परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९७ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९७ =*
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*= देव निर्मित पालकी आना =* 
इधर नारायणा धाम में जो शिष्य एकत्र हो गए थे, उनके सब के मन में भी गुरु ज्ञान द्वारा पूर्ण धैर्य था । उनके मुखमंडलों से तो किसी को पता ही नहीं लगता था कि इनके मन में गुरुदेवजी के वियोग की चिन्ता होगी । जब महाप्रयाण के दो दिन शेष रहे थे तब एक देव निर्मित सुन्दर पालकी रात्रि के समय आकाश मार्ग से आकर दादूजी की भजन शाल में स्थित हो गई थी । वह केशर चंदन से चर्चित थी और सुन्दर थी । 
प्रातःकाल सब संतों ने उसे देखा और दादूजी महाराज से पूछा स्वामिन् ! यह पालकी कौन लाया है ? इसको लाते तो हमने किसी को भी नहीं देखा । दादूजी ने कहा - यह तो हरि की भेजी हुई आई है । वह पालकी सभी संतों को प्रिय तो लग रही थी किन्तु क्यों आई है, यह संशय भी उनके हृदय को चंचल कर रहा था । फिर दादूजी महाराज ने कहा - यह मेरा शरीर अब यहां नहीं रहेगा । इस शरीर के लिये ही हरि ने यह भेजी है । मेरे शरीर को इस में रखकर भैराणे पर्वत की गुफा के पास की खोल में रख आना । यदि तुम लोग यह प्रश्न करो कि फिर हम क्या करेंगे, उसकी चिन्ता तुम मत करना वह तो कर्ता पुरुष अपने आप ही कर लेंगे । कहा भी है - 
“स्वामीजी आज्ञा दिई, धरियो परवत मांहिं । 
करन हार कर लेयगा, तुम को चिन्ता नांहिं ॥” 
*= फिर दादूजी महाराज ने कहा =* 
भैराणा पर्वत अति पवित्र स्थान है । भैराणा पर्वत पर अनेक संतों ने भजन कीया है और अब से आगे वह हमारा क्षेत्र कहलायेगा । आगे भी उस पर अनेक संत साधन करते रहेंगे । उससे भैराणा पर्वत की महिमा और भी बढ़ जायगी । भैराणा गंगा के हरिद्वार क्षेत्र के समान पुण्य प्रद है । इतना कहकर दादूजी महाराज ध्यानस्थ हो गये । रात्रि के दश बजे के लगभग समय था । फिर सब संत तथा भक्त अपने - अपने आसनों पर जाकर भगवद् भजन करने लग गये । 

इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ९७ समाप्तः । 
(क्रमशः)

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