परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९७ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= अथ विन्दु ९७ =*
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*= गरीबदासजी को उपदेश =* 
श्री दादूवाणी परिचय शीर्षक के ऊपर विन्दु ९५ में दादूजी महाराज ने गरीबदासजी को भविष्य में श्री दादूवाणी का आश्रय लेकर रहने की आज्ञा देकर वाणी के प्रतिपाद्य(वाणी जिसका प्रतिपादन करती है उस) परब्रह्म पर दृढ़ विश्वास रखते हुये गरीबदासजी को कहा -
“दादू राखी राम पर, अपनी आप समाह । 
दूजे को देखूँ नहीं, हैं ज्यों निरवाह ॥” 
दादूजी महाराज ने कहा - हमने तो भविष्य की बात निरंजन राम पर ही रक्खी है । वह अपने भक्तों की सब प्रकार से रक्षा करना रूप प्रतिज्ञा वाक्य का स्मरण करके जैसे होगा, वैसे ही निरवाह करते रहेंगे । मैं तो अन्य किसी को भी इस कार्य में समर्थ नहीं देखता हूँ । 
“अविनाशी के आसरे, अजरावर की ओट । 
दादू शरणे साँच के, कदे न लागे चोट ॥” 
इस लिये तुम लोगों को अविनाशी ब्रह्म का ही आश्रय रखना चाहिये और देवता भी जिससे वर नहीं हैं ऐसे अजरावर परब्रह्म की ओट में ही रहना चाहिये । उस सत्य - स्वरूप परब्रह्म की शरण में रहने वालों के यमादि की चोट कभी भी नहीं लगती है । उसी ब्रह्म का यथार्थ स्वरूप बताते हुये मेरी वाणी तुमको निर्द्वन्द्व रखने में समर्थ होगी । अन्य भी कोई उसके वचनों के अनुसार चलेगा, उसका भी परम हित ही होगा, वह असत्य प्रपंच से मुक्त होकर परब्रह्म को ही प्राप्त होगा । इसमें कुछ भी संशय नहीं करना चाहिये । आगे मेरी शिष्य परंपरा के साधक भी जो उक्त प्रकार निर्गुण ब्रह्मभक्ति के सिद्धांत का आश्रय लेकर साधन करैंगे, उनकी भी सहायता मन वाणी के अविषय परब्रह्म करते रहेंगे और जो उक्त इष्ट से भ्रष्ट हो जायेंगे, उनको तो शांति के केंद्र परब्रह्म के स्वरूप में किसी भी प्रकार का स्थान नहीं मिलेगा अर्थात् वे परब्रह्म को प्राप्त नहीं कर सकेंगे । यह तुम भी अच्छी प्रकार विचार करके अपने मन में देखलो, मेरा उक्त कथन सत्य ही है । 
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जब उक्त प्रकार श्री स्वामी दादू दयालुजी महाराज ने यथार्थ वचन कहा, तब गरीबदासजी ने उक्त वचन का परमादर करते हुये उसे अपने हृदय में निश्चय पूर्वक धारण कर लिया, और कहा - स्वामिन् ! आपकी वाणी का आश्रय हमारे लिये तथा भविष्य में होने वाले आपके समाज के साधकों के लिये परमोत्तम रहेगा । जब गरीबदासजी ने दादूजी महाराज की भावना को भली - भांति पहचान लिया तब दादूजी महाराज ने कहा - 
“जाको राखे साइयां, मार सके नहिं कोय । 
बाल न बाँका कर सके, जे जग वैरी होय ॥” 
अर्थात - जब तुम उक्त प्रकार परमात्मा की शरण में रहोगे तब तुम्हारी क्षति कोई भी नहीं कर सकेगा । जिसकी रक्षा परमात्मा करते हैं, उसको संसार में कोई भी नहीं मार सकता । यदि संपूर्ण संसार भी वैरी हो जाय तो भी उक्त प्रकार के भक्त का एक बाल भी बाँका नहीं कर सकता, फिर अधिक हानि तो कर ही कैसे सकता है । 
(क्रमशः)

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