परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/१५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= नथुवा की गतिविधि =* 
*नथुवा ठग्यौ सुगन्ध ठगि, नाना बिधि के फूल ।* 
*चोवा चन्दन अरगजा, सूंघि सूंघि करि भूल ॥१५॥*  
उधर नथुवा सुगन्ध ठग के चक्कर में पड़ गया । नाना प्रकार के फूलों को दिन-रात सूंघना ही उसका काम रह गया । चौवा, चन्दन अगर आदि सुगन्धित पदार्थों को सूंघ-सूंघ कर अपने स्वरूप को, वास्तविक कर्तव्य को, भुला बैठा ॥१५॥ 
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*= रसनूं की गतिविधि =*
*रसनूं घट रस ठगि ठग्यौ, मिष्ट अम्ल अरु खार ।*
*तीक्षण कटुक कसाय पुनि, इनसौं कीयौ प्यार ॥१६॥
चौथा पुत्र रसनूं षट् रस ठग की ठगी में फँस गया । वह मीठे, खट्टे, खारे, तीखे, कडुवे तथा कषाय रसों का स्वाद लेने में ही अपने अस्तित्व की इति-कर्तव्यता मान बैठा । इन रसों में उसकी इतनी आसक्ति हो गयी कि उसे दुनिया की अन्य कोई भी बात अच्छी नहीं लगती थी ॥१६॥ 
(क्रमशः)

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