#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*= विन्दु ९६ =*
.
*६ - उत्तर मीमांसा -*
उत्तर मीमांसा वेदांत शास्त्र छः वां दर्शन है । उसका तो दादू वाणी में विशेष रूप से वर्णन मिलता है । उसके कुछ उदाहरण -
*ब्रह्म -*
“कृत्रिम नहिं सो ब्रह्म है, घटे बढ़े नहिं जाय ।
पूरण निश्चल एक रस, जगत न नाचे आय ॥
दादू अविहड़ आप है, कबहूं विहड़े नांहिं ।
घटे बधे नहिं एक रस, सब उपजे उस मांहिं ॥
बिन श्रवणों सब कुछ सुने, बिन नैनहु सब देखे ।
बिन रसना सबै कुछ बोले, यहु दादू अचरज पेखे ॥
हस्त पांव नहिं शीश मुख, श्रवण नेत्र कहु कैसा ।
दादू सब देखे सुने, कहै गहै ऐसा ॥”
*ब्रह्म का सोपाधिक स्वरूप -*
“सबै सो सारिखा, सबै दिशा मुख बैन ।
सबै दिशा श्रवणोंहु सुने, सबै दिशा कर नैन ॥
सबै दिशा पग शीश है, सबै दिशा मन चैन ।
सबै दिशा सन्मुख रहै, सबै दिशा अंग ऐन ॥”
*ब्रह्म की जीव में व्याप्ति -*
“जीयें तेल तिलन में, जीयें गंध फूलंनि ।
जीयें माखण क्षीर में, ईयें रब्ब रूहंनि ॥
पुहप वास घृत दूध में, अब का से कहिये ।
पाहन लोह बिच वासुदेव, ऐसे मिल रहिये ॥”
उक्त प्रकार ब्रह्म का निरूपण दादूवाणी में अनेक प्रकार हुआ है ।
*ईश्वर -*
“सब देखण हारा जगत का, अन्तर पूरे साखि ।
दादू स्याबत सो सही, दूजा और न राखि ॥
माँहीं थे मुझ को कहै, अन्तरयामी आप ।
दादू दूजा धंध है, साचा मेरा जाप ॥”
*माया -*
“उपजे विनशे गुण धरे, यहु माया का रूप ।
दादू देखन थिर नहीं, क्षण छांही क्षण धूप ॥
जे नाहीं सो ऊपजे, है सो उपजे नांहिं ॥
अलख आदि अनादि है, उपजे माया मांहिं ॥”
*जीव -*
“जामे मरे सो जीव है, रमता राम न होय ।
जामण मरणे से रहित, मेरा साहिब सोय ॥”
*प्रश्न -*
जे यहु कर्ता जीव था, संकट क्यों आया ।
कर्मों के वश क्यों भया, क्यों आप बँधाया ॥
*उत्तर -*
दादू कृत्रिम काल वश, बँध्या गुण मांहीं ।
उपजे विनशे देखतां, यहु कर्ता नांहीं ॥”
*आभासवाद -*
“जल में गगन, गगन में जल है,
पुनि वह गगन - निरालम् ।
ब्रह्म जीव इहिं विधि रहै, ऐसा भेद विचारम् ॥
ज्यों दर्पण में मुख देखिये, पानी में प्रतिबिम्ब ।
ऐसे आतम राम हैं, दादू सब ही संग ॥”
*साभास - अन्तःकरण -*
जब दर्पण में मुख देखिये, तब अपना सूझे आप ।
दर्पण बिन सूझे नहीं, दादू पुन्य रु पाप ॥”
*सृष्टि -*
“एक शब्द सब कुछ किया, ऐसा समर्थ सोय ।
आगे पीछे तो करे, जो बल - हीना होय ॥”
*अध्यास -*
“मैं नाहीं तब एक है, मैं आई तब दोय ।
मैं तैं पड़दा मिट गया, तब ज्यों था त्यों ही होय ॥
जहां राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम ।
दादू महल बारीक है, द्वै को नांहीं ठाम ॥
दादू आपा जब लगे, तब लग दूजा होय ।
जब यहु आपा मिट गया, तब ज्यों था त्यों ही होय ॥”
*संसार -*
“स्वप्ने सब कुछ देखिये, जागे तो कुछ नांहिं ।
तैसा यहु संसार है, समझ देख मन मांहिं ॥
जे नाहीं सो देखिये, सूता सुपने मांहिं ।
दादू झूठा हो गया, जागे तो कुछ नांहिं ॥”
*मन -*
“मन ही माया ऊपजे, मन ही माया जाय ।
मन ही राता राम से, मन ही रहा समाय ॥
मन ही मरणा ऊपजे, मन ही मरणा खाय ।
मन अविनाशी हो रह्या, साहिब से ल्यौ लाय ॥
मन ही से मल ऊपजे, मन ही से मल धोय ।
सीख चले गुरु साधु की, तो तू निर्मल होय ॥
ऐसा कोई एक मन, मरै सु जीवे नांहिं ।
दादू ऐसा बहुत हैं, फिर आवें कलि मांहिं ॥
पाका मन डोले नहीं, निश्चल रहै समाय ।
काचा मन दह दिश फिरै, चंचल चहुँ दिशि जाय ॥”
*आशा तहां वाशा -*
“जिसकी सुरति जहां रहै, तिसका तहँ विश्राम ।
भावै माया मोह में, भावै आतम राम ॥
जहँ मन राखे जीवतां, मरतां तिस घर जाय ।
दादू वासा प्राण का, जहँ पहले रहा समाय ॥
जप तप करणी कर गये, स्वर्ग पहूंचे जाय ।
दादू मन की बासना, नरक पड़े फिर आय ॥
*सूक्ष्म जन्म -*
“दादू जेते गुण व्यापैं जीव को, ते ते ही अवतार ।
आवागमन यहु दूर कर, समर्थ सिरजनहार ॥
सब गुण सब ही जीव के, दादू व्यापैं आहिं ।
घट मांहीं जीवे मरे, कोई न जाणे ताहिं ॥
जीव जन्म जाणैं नहीं, पलक-पलक में होय ।
चौरासी लख भोगवे, दादू लखे न कोय ॥
निश वासर यहु मन चले, सूक्ष्म जीव संहार ।
दादू मन थिर कीजिये, आतम लेहु उबार ॥”
*सूक्ष्म सौच -*
“दादू देह जतन कर राखिये, मन राख्या नहिं जाय ।
उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाय ॥”
*अभ्यास -*
“जहां तैं मन उठ चले, फेरी तहां ही राखि ।
तहँ दादू लै लीन कर, साधु कहें गुरु साखि ॥”
*जीवन्मुक्ति -*
“जीवत छूटे देह गुण, जीवत मुक्ता होय ।
जीवत काटे कर्म सब, मुक्त कहावे सोय ॥
गुणातीत सो दर्शनी, आपा धरै उठाय ।
दादू निर्गुण राम गहि, डोरी लागा जाय ॥
देह रहै संसार में, जीव राम के पास ।
दादू कुछ व्यापे नहीं, काल झाल दुखत्रास ॥
दादू छूटे जीवतां, मूँवाँ छूटे नांहिं ।
मूँवाँ पीछे छूटिये, तो सब आये उस माँहिं ॥
मूँवाँ पीछे मुक्ति बतावे, मूवाँ पीछे मेला ।
मूंवाँ पीछे अमर अभय पद, दादू भूले गहिला ॥
पिंड मुक्ति सब को करे, प्राण मुक्ति नहिं होय ।
प्राण मुक्ति सद्गुरु करे, दादू बिरला कोय ॥”
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें