परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

= १६३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू ऐसे महँगे मोल का, एक सांस जे जाइ ।
चौदह लोक समान सो, काहे रेत मिलाइ ॥ 
षट चक्र पवना फिरे, छः सौ, सहस्त्र एक बीस ।
योग अमर जम कूँ गीले, दादू बिसवा बीस ॥ 
रोम रोम लै लाइ धुनि, ऐसे सदा अखंड ।
दादू अविनाशी मिले, तो जम को दीजे दंड ॥ 
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साभार ~ Maharshi Santsevi Paramhans

*सत्संग-सुधा*
(हर्ष प्रतीक के पोस्ट से:)
'गुरु मंत्र जप, गुरु ध्यान धर'
कहता हूँ कहि जात हूँ, 
कहूँ बजाये ढोल |
श्वासा खाली जात है, 
तीन लोक को मोल ||
ऐसे महँगे मोल का,
एक श्वास जो जाय |
तीन लोक नहिं पटतरे,
काहे धूल मिलाय ||
एक श्वास की इतनी कीमत है, वह तीनों लोक पर आधिपत्य कर सकता है | हमलोग प्रतिदिन इक्कीस हजार छ: सौ श्वास लेते हैं | गुरु गोरखनाथजी महाराज कहते हैं कि अगर प्रत्येक श्वास में जप किया जाए, तो स्वाभाविक ही अनहद ध्वनि की अनुभूति होने लग जाएगी |
'छ: सौ सहस इकीसो जाप | 
अनहद उपजै आपे आप ||'
.
अन्य संतों का नाम जप-रुप ध्यान पे क्या मत है आईए देखते हैं~
'गुरु जाप जपन साँचो तप सकल काज सारणं'
'अति पावन गुरु मंत्र मनहिं मन जाप जपो |
उपकारी गुरु रुप को मानस ध्यान थपो ||'
(सद्गुरु महर्षि मेँहीँ )
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मूल ध्यान गुरु रुप है, 
मूल पूजा गुरु पाँव |
मूल नाम गुरु वचन है,
मूल सत्य सतभाव ||
(संत कबीर)
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अंतरि गुरु आराधना जिह्वा जपि गुरु नाउ ||
नेत्री सतिगुरु पेखणा स्त्रवणी सुनणा गुरु नाउ ||
सतिगुरु सेती रतिया दरगह पाइऐ ठाउ ||
कहु नानक किरपा करे जिसनो एक वथु देइ ||
जग माहि ऊतम काढी बिरले केई केइ ||
गुरु की मूरत मन महिं धियानु | 
गुरु कौ शबदि मंत्र मनु मानु ||
गुरु कै चरन रिदै लै धारउ |
गुरु पारब्रह्म सदा नमसकारउ ||
(गुरुनानकदेवजी महाराज)
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गुरु ही को धरि ध्यान, नाम गुरु को जापो |
आपा दीजै भेंट, पूजन गुरु ही थपो ||
(संत चरणदासजी महाराज)
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गुरु मंत्र का जप करो, गुरु-रुप का ध्यान करो | लेकिन अगर तुमने आपा नहीं दी, अहंकार का त्याग नहीं किया, मन में अहम् रखे रहे, तो अध्यात्म पथ पर आगे नहीं बढ़ सकते | कबीर साहब कहते हैं-
"अहं अग्नि ह्रदय जरै, गुरु से चाहै मान |
तिनको यम न्यौता दिया, हो हमरे महिमान ||"
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इसलिए अहंकार को त्यागकर गुरु-प्रदत्त मंत्र का मानस जप ओर गुरु के पवित्र रुप का मानस ध्यान करो | फिर आगे की सूक्ष्म साधना है |
~ संत सद्गुरु महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज

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