॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९७ =*
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*= गरीबदासजी का संत तथा भक्तों को सूचना देना =*
जब दादूजी महाराज के महा प्रयाण का निश्चय हो गया तब गरीबदासजी ने अपने गुरु भाइयों को तथा प्रेमी भक्तों को सूचना भेज दी कि आप लोग श्री स्वामी दादूदयालुजी महाराज का दर्शन करने शीघ्र नारायणा धाम पर पधार जायें । यदि देर करेंगे तो स्वामी दादूजी महाराज के दर्शनों से वंचित ही रह जायेंगे । उक्त सूचना जिन-जिन संत, भक्तों को प्राप्त हुई उनमें जो-जो अति प्रेमी थे वे तो सूचना मिलते ही नारायणा धाम को चल पड़े और दादूजी महाराज का दर्शन तथा सत्संग करके परमानन्द को प्राप्त हुये और जिनने किसी कारणवश देर की उनको पश्चात्ताप ही करना पड़ा था, उनको दादूजी का सत्संग न मिला ।
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*= टीलाजी को आमेर भेजना =*
उन्हीं दिनों में दादूजी महाराज ने सोचा - टीला का मेरे शरीर में अधिक अनुराग है । अतः महा - प्रयाण के समय उसका पास रहना अच्छा नहीं रहेगा । इसलिये टीलाजी को बुलाकर दादूजी महाराज ने कहा - टीलाजी ! तुम आमेर जाओ, वहां के सेवक तथा संतों को मेरा सत्यराम कहना और जगन्नाथजी को साथ लेकर शीघ्र ही आ जाना । टीलाजी को उक्त आज्ञा दी तब टीलाजी को वह रुचिकर नहीं हुई । वे गुरुदेव दादूजी को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे । उक्त आज्ञा को सुनकर टीलाजी अधीर हो गये थे । टीलाजी को अधीर देखकर दादूजी महाराज ने कहा - तुम तो संत हो, तुम्हारी तो ऐसी दशा नहीं होनी चाहिये । अधीर मत हो, तुम केवल २५ वर्ष ही मेरे से अलग रहोगे फिर तो मेरे स्वरूप में ही लीन हो जाओगे । अतः अपने स्वरूप का विचार करके धैर्य धारण करो और आमेर जाओ ।
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फिर टीलाजी ने गुरुदेव की आज्ञा मानकर गुरुजी को साष्टांग दंडवत किया । और गुरुजी की आज्ञानुसार आमेर को चल पड़े । टीलाजी नारायणा धाम से चले उस दिन के सहित छः दिन ही दादूजी के महाप्रयाण के शेष रहे थे । टीलाजी आमेर में जाकर गुरुजी की आज्ञानुसार संत तथा भक्तों को सत्यराम कहा और दादूजी के महाप्रयाण की सूचना भी संकेत मात्र दी । बुद्धिमान् संत तथा भक्त जन तो समझकर चल पड़े । जगन्नाथजी को सूचना मिलने पर वे भी कुछ अधीर से होकर फिर धैर्य युक्त हो टीलाजी के साथ गुरुदेवजी के दर्शन करने शीघ्र ही चल पड़े ।
(क्रमशः)
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