परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 27 दिसंबर 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #३७८

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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३७८)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३७८. भयभीत भयानक । दादरा*
*का जानों मोहि का ले करसी ?*
*तनहिं ताप मोहि छिन न विसरसी ॥टेक॥*
*आगम मोपै जान्यूं न जाहि, इहै विमासण जियरे मांहि ॥१॥*
*मैं नहिं जानों क्या सिर होइ, तातैं जियरा डरपै रोइ ॥२॥*
*काहू तैं ले कछू करै, तातैं मइया जीव डरै ॥३॥*
*दादू न जानैं कैसे कहै, तुम शरणागति आइ रहै ॥४॥*
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इस भयानक संसार में प्रभु भजन के बना न जाने किस-किस कर्म का कैसा-कैसा फल मुझे काल भगवान् देंगे । और आगे क्या-क्या होने वाला है । यह कोई भी नहीं जान सकता है । वर्तमान में भी यह मेरा शरीर अनेक दुःखों से दुःखी होकर क्या-क्या कष्ट सहेगा । यह मैं कुछ भी नहीं जानता ।
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अतः मेरा मन भय से भयभीत होकर रोता है कि हे प्रभो मुझे आपके दर्शन कब होंगे और मेरा दुःख कैसे निवृत्त होगा । अहो मेरा प्रभु विलक्षण स्वभाव वाला है कि मेरे मन को तो हरण कर लिया लेकिन दर्शन नहीं देते । अतः मेरा मन भयभीत हो रहा है । हे प्रभो ! मैं आपकी शरण में हूँ । मेरे लिये आपका क्या आदेश होता है यह मैं नहीं जान रहा हूँ ।
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लिखा है कि – भगवान् गुणगणों के समुद्र हैं उन गुणों के मध्य में दया मणि के समान प्रधानगुण हैं । अतः उस करूणानिधि की करुणा से ही मुझे कुछ सुख मिल सकता हैं । हे दया के सागर ! इस जगत् के मध्य आपका यह क्या स्वभाव है कि आप क्षुद्र प्राणि के लिये भी अवतार धारण करके उसको दर्शन दे कर आप अपने को कृती समझते हैं ।
(क्रमशः)

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