परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

= १९१ =

*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू काया अंतर पाइया, अनहद बैन बजाइ ।*
*सहजैं आप लखाइया, शून्य मंडल में जाइ ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
अजपा सीखो ।
नानक ने कहा, कबीर ने कहा : अच्चुत ! ऐसा ही मंत्र है। जहां सारे मंत्र शांत हो जाते हैं, वहीं असली मंत्र पैदा होता है। जो मंत्र तुम दोहराते हो, उस मंत्र का कोई मूल्य नहीं है। तुम्हारी जबान से दोहराया गया, तुम्हारी जबान से ज्यादा मूल्यवान हो नहीं सकता है। जिस ओंकार को तुम गुनगुनाते हो, तुम्हारा ओंकार तुमसे छोटा होगा। एक और ओंकार है, जो तुम्हारे गुनगुनाने से पैदा नहीं होता-जिसकी गुनगुनाहट से तुम पैदा हुए हो, एक और ओंकार है, जिसका नाद सारे जगत को घेरे हुए है। जिससे जगत् निर्मित हुआ है।
.
उस ओंकार को सुनने के लिए गुनगुनाने की जरूरत नहीं है। उस ओंकार को सुनने के लिए सब गुनगुनाना बंद हो जाए, वाणी मात्र शांत हो जाए विचार लीन हो जाएं, मन में कोई तरंग न रहे, तब अचानक तुम चकित होकर सुनोगे--एक संगीत बज रहा है भीतर ! सदा से बजता है। मगर तुम शोरगुल से भरे थे और उसे सुन न पाएं। और कभी-कभी सांसारिक शोरगुल सेछूटते हो तो अध्यात्मिक शोरगुल से भर जाते हो। कोई आदमी बाजार के शोरगुल से भरा था।
.
तेईस धंटे उससे भरा रहता है,फिर मंदिर में बैठ जाता है। वहां जा कर नमोकार पढ़ने लगता है या ओंकार का जाप करने लगता है या राम-राम,राम-राम की धुन लगा देता है। तुम शोरगुल से कब छूटोगे। शोरगुल बदल लिया। पहले संसारीक शोरगुल था, अब अध्यात्मिक शोरगुल। मगर शोरगुल, शोरगुल है। कोई अध्यात्मिक नहीं होता, कोई सांसारिक शोरगुल नहीं होता। शोरगुल शोरगुल है। अजपा सीखो।
.
नानक ने कहा, कबीर ने कहा : अजपा सीखो।
धर्मदास ने कहा : अजपा सीखो, अजपा का अर्थ होता है, जो तुम्हारे जाप से पैदा नहीं होता। लेकिन तुम्हारे जब सब जाप बंद हो जाते हैं, छुट गई हाथ से माला, गिर गए हाथ के फूल, बूझ गई आरती, भूल गई मूर्ति। मंदिर पूजा, प्रार्थना, शब्द खो गए, सब शांत हो गया। उस क्षण अचानक विस्फोट होता है। और ऐसा नहीं कि उस क्षण विस्फोट होता है।
.
संगीत तो भीतर बज ही रहा था। परमात्मा तुम्हारी वीणा पर खेल ही रहा है। तुम्हारे वीणा के तार छू ही रहा है। नहीं तो तुम जियोगे कैसे। तुमहार जीवन क्या है। जिस क्षण उसकी अंगुलियां तुम्हारे वीणा के तारों से अलग हो गईं, उसी क्षण तुम मर जाते हो। उसकी अंगुलियां तुम्हारी वीणा पर खेल रही हैं।
वही तो तुम्हारा जीवन है--जीवन--संगीत है।
.
मगर एक बार सुनायी पड़ जाए, बस फिर अड़चन नहीं आती । फिर जब चाहो--"जब जरा गरदन झुकाई, दिल के आईने में है तस्वी--यारा "फिर तो जरा गरदन झुकाई और देख ली। जब मन हुआ, आंख को बंद किया क्षण को, और देख ली। बीच बाजार में चलते--चलते एक क्षण को सुनना चाहा, सुन लिया संगीत। फिर तुम कहीं भी रहो,उससे जुड़े हो। अजपा चलता है। अच्चुत ! तुम ठीक कहते हो। नमोकार जब खो जाता है।
तभी नमोकार का जन्म है।
OSHO

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें