परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 22 जुलाई 2024

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*दादू निरंतर पीव पाइया, जहँ आनन्द बारह मास ।*
*हंस सौं परम हंस खेलै, तहँ सेवक स्वामी पास ॥*
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*साभार ~ @Krishna Krishna*
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गुरु का अर्थ है : मरुस्थल में तुम्हें कोई मरूद्यान मिल गया। अज्ञानियों की भीड़ में तुम्हें कोई जागा पुरुष मिल गया। सोए हुए लोगों में तुम्हें कोई मिल गया जो सोया हुआ नहीं है। सोया हुआ जो नहीं है वही तुम्हें जगा सकेगा।
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शास्त्रों से काम नहीं चलने का। शास्त्र तो कमजोर पकड़ लेते हैं। कायर शास्त्रों को पकड़ लेते हैं। साहसी शास्ता को खोजते हैं; जिसके भीतर अभी शास्त्र का जन्म हो रहा हो, जिसके भीतर उस दूर के प्रकाश की किरण उतर रही हो, अभी नाचती हो, अभी जीवंत हो, अभी धड़कती हो, अभी श्वास लेती हों—ऐसे व्यक्ति के पास ही श्रद्धा का आविर्भाव होता है। फिर इसी श्रद्धा के सहारे तो परमात्मा की तरफ जाना है।
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इसलिए गुरु पाथेय है। बिना गुरु के पाथेय को पकड़े हुए तुम जा न सकोगे। यात्रा बहुत खतरनाक है। बड़े से बड़ा खतरा तो यही है कि तुम जाओगे कहां ? किस दिशा में खोजोगे ? कैसे खोजोगे ? तुम अपने से इतने ग्रसित हो ! और तुम्हारा सारा अतीत अज्ञान का है, तुम्हारा सारा अतीत गलत आदतों से भरा है, उन्हीं आदतों को सिर पर लिये जाओगे, वे आदतें तुम्हें वापिस अतीत की तरफ मोड़ती रहेंगी।
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आदतों का एक नियम है कि वे पुनरुक्त होना चाहती हैं। तुमने कल शराब पी थी, आदत आज भी कहेगी—पीओ। तुमने कल गाली दी थी, आदत आज भी कहेगी—दों। तुमने जो कल किया था, और— और अतीत में किया था, वह सब दोहरना चाहता है। कोई भी आदत आसानी से नहीं छूट जाती। और ध्यान रखना, तुम्हारे पास आदतों के सिवाय कुछ भी नहीं है; तुम्हारे पास अतीत के सिवाय कुछ भी नहीं है, भविष्य तुम्हारे पास नहीं है।
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ऐसे किसी व्यक्ति को खोज लेना जिसके पास भविष्य हो। उसके साथ जुडोगे तो द्वार खुलेगा, क्योंकि भविष्य द्वार है। उसके साथ जुडोगे तो धीरे—धीरे भरोसा बढ़ेगा, धीरे—धीरे उसकी तरंगें तुम्हारे हृदय की भी बंद कलियों को खोलेंगी। उसकी हवाएं तुम्हारे भीतर प्रवेश करेंगी; तुम्हारे वृक्षों को स्पर्श करेंगी, तुम्हारे वृक्षों में से दौड़ेगी, तुम्हारी धूल झाड़ेंगी, तुम्हारे सूखे पत्ते गिराकी, तुम्हारी पुरानी आदतों को उखाड़ेंगी; और धीरे—धीरे तुम्हारे भीतर भी नये पत्ते ऊगने शुरू हो जाएंगे—तुम समर्थ हो, सिर्फ तुम्हें अपने सामर्थ्य का पता नहीं है।
आचार्य रजनीश ओशो

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