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*कालर खेत न नीपजै, जो बाहे सौ बार ।*
*दादू हाना बीज का, क्या पचि मरै गँवार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
उपदेश का अंग ८
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आप सौं होय सो तो कछु कीजिये,
जो बन होय सु राम के सारै१ ।
सूर हि दोष न नेन मुंदे पर,
जोलौं न प्राणसु पलक उघारै२ ॥
मेध सु मान३ कहो कहा कीजिये,
जो खेत कि सौंज४ किसान न धारै५ ।
हो रज्जब त्यों सुन सुकृत बाहिरै६,
साहिब साधु कहो कैसे तारै ॥१॥
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उपदेश सबंधी विचार प्रकट कर रहे हैं...
अपने से हो सके वह तो परमार्थ कुछ करना ही चाहिये और जो बन जाय उसे समझना चाहिये कि यह राम के अनुग्रह से ही सिद्ध१ हुआ है ।
प्राणी जब तक नेत्र की पलक नहीं खोले२, नेत्र बंद रक्खे तब प्रकाश ने मिलने का दोष सूर्य का नहीं होता ।
यदि किसान खेत को सामग्री विचार४ पूर्वक५ तैयार न करै तब कहो इसमें बादल का घंमड३ करना क्या कहा जाय ?
वैसे ही उपदेश सुनकर भी सुकृत से वर्हिमुख६ रहे अर्थात सुकृत नहीं करे तब उसे प्रभु और संत कैसे तारेंगे ?
(क्रमशः)
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