परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

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*दादू कहै- दिन दिन नवतम भक्ति दे,*
*दिन दिन नवतम नांव ।*
*दिन दिन नवतम नेह दे, मैं बलिहारी जांव ॥
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*नया साल*
मुझसे कहते हैं मित्र कि नये वर्ष के लिए कुछ कहूं। नये वर्ष के लिए मैं कुछ न कहूंगा। क्योंकि आप ही तो नया वर्ष फिर जीएंगे, जिन्होंने पिछला वर्ष पुराना कर दिया; आप नये वर्ष को भी पुराना करके ही रहेंगे।आपने न मालूम कितने वर्ष पुराने कर दिए !
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आप पुराना करने में इतने कुशल हैं कि नया वर्ष बच न पाएगा, इसकी उम्मीद बहुत कम है। आप इसको भी पुराना कर ही देंगे। और एक वर्ष बाद फिर इकट्ठे होंगे और फिर सोचेंगे, नया वर्ष। ऐसा आप कितनी बार नहीं सोच चुके हैं! लेकिन नया आया नहीं ! क्योंकि आपका ढंग पुराना पैदा करने का है।
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नये वर्ष की फिकर न करें। नये का कैसे जन्म हो सकता है, इस दिशा में थोड़ी सी बातें सोचें और थोड़े प्रयोग करें। तो तीन बातें मैंने आपसे कहीं। एक तो पुराने को मत खोजें। खोजेंगे तो वह मिल जाएगा, क्योंकि वह है। हर अंगारे में दोनों बातें हैं। वह भी है जो राख हो गया अंगारा, बुझ गया जो; जो अंगारा बुझ चुका है, जो हिस्सा राख हो गया, वह भी है, और वह अंगारा भी अभी भीतर है जो जल रहा है, जिंदा है; अभी है, अभी बुझ नहीं गया। अगर राख खोजेंगे, राख मिल जाएगी।
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जिंदगी बड़ी अद्भुत है, उसमें खोजने वालों को सब मिल जाता है। वह आदमी जो खोजने जाता है उसे मिल ही जाता है। और जो आपको मिल जाता हो, ध्यान से समझ लेना कि आपने खोजा था इसीलिए मिल गया है। और कोई कारण नहीं है उसके मिल जाने का। नया अंगारा भी है, वह भी खोजा जा सकता है।
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तो पहली बात, पुराने को मत खोजना। कल सुबह से उठ कर थोड़ा एक प्रयोग करके देखें कि पुराने को हम न खोजें। कल जरा चैक कर अपनी पत्नी को देखें जिसे तीस वर्ष से आप देख रहे हैं। शायद आपने तीस वर्ष देखा ही नहीं फिर। हो सकता है पहले दिन जब आप लाए थे तो देख लिया होगा, फिर बात समाप्त हो गई। फिर आपने देखा नहीं। 
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और अगर अभी मैं आपसे कहूं कि आंख बंद करके जरा पांच मिनट अपनी पत्नी का चित्र बनाइये मन में, तो आप अचानक पाएंगे कि चित्र डांवाडोल हो जाता है, बनता नहीं। क्योंकि कभी उसकी रेखा भी तो अंकित नहीं हो पाई। हालांकि हम चिल्लाते रहते हैं कि इतना प्रेम करते हैं, इतना प्रेम करते हैं। वह सब चिल्लाना भी इसीलिए है कि प्रेम नहीं करते, शोरगुल मचा कर आभास पैदा करते रहते हैं। वह आभास हम पैदा करते रहे हैं।
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तो कल सुबह उठ कर नये की थोड़ी खोज करिए। नया सब तरफ है, रोज है, प्रतिदिन है। और नये का सम्मान करिए, पुराने की अपेक्षा मत करिए। हम अपेक्षा करते हैं पुराने की। हम चाहते हैं कि जो कल हुआ वह आज भी हो। तो फिर आज पुराना हो जाएगा। जो कभी नहीं हुआ वह आज हो, इसके लिए हमारा खुला मन होना चाहिए कि जो कभी नहीं हुआ वह आज हो। हो सकता है वह दुख में ले जाए।
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लेकिन मैं आपसे कहता हूं, पुराने सुखों से नये दुख भी बेहतर होते हैं, क्योंकि नये होते हैं। उनमें भी एक जिंदगी और एक रस होता है। पुराना सुख भी बोथला हो जाता है, उसमें भी कोई रस नहीं रह जाता। इसलिए कई बार ऐसा होता है कि पुराने सुखों से घिरा आदमी नये दुख अपने हाथ में ईजाद करता है, खोजता है।
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वह खोज सिर्फ इसलिए है कि अब नया सुख नहीं मिलता तो नया दुख ही मिल जाए। आदमी शराब पी रहा है, वेश्या के घर जा रहा है। यह नए दुख खोज रहा है। नया सुख तो मिलता नहीं, तो नया दुख ही सही। कुछ तो नया हो जाए। नये की उतनी तीव्र प्राणों की आकांक्षा है। लेकिन हम पुराने की अपेक्षा वाले लोग हैं।
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इसलिए दूसरा सूत्र आपसे कहता हूं: पुराने की अपेक्षा न करें। और कल सुबह अगर पत्नी उठ कर छोड़ कर घर जाने लगे, तो एक बार भी मत कहें कि अरे तूने तो वायदा किया था। कौन किसके लिये वायदा कर सकता है तब उसे चुपचाप घर से विदा कर आएं। 
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जिस प्रेम से उसे ले आए थे, उसी प्रेम से विदा कर आएं। यह विदा भी स्वीकार कर लें, नये की सदा संभावना है। पत्नी चैबीस घंटे पूरी जिंदगी के साथ रहेगी, यह जरूरी क्या है ? रास्ते मिलते हैं और अलग हो जाते हैं। मिलते वक्त और अलग होते वक्त इतना परेशान होने की बात क्या है ?
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लेकिन नहीं, बड़ा मुश्किल है विदा होना। क्योंकि हम कहेंगे कि जो पुराना था उसे थिर रखना है। सब पुराने को थिर रखना है। नया जब आए तब उसे स्वीकार करें, पुराने की आकांक्षा न करें।
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*तीसरी बात: कोई और आपके लिए नया नहीं कर सकेगा; आपको ही करना पड़ेगा। और ऐसा नहीं है कि आप पूरे दिन को नया कर लेंगे या पूरे वर्ष को नया कर लेंगे, ऐसा नहीं है, एक-एक कण, एक-एक क्षण को नया करेंगे तो अंततः पूरा दिन, पूरा वर्ष भी नया हो जाएगा।*
जीवन रहस्य~ओशो

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