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*जब चरण कमल रज पावै,*
*तब काल व्याल बौरावै ।*
*तब त्रिविध ताप तन नाशै,*
*तब सुख की राशि विलासै ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*गोपीचन्द*
*छप्पय-*
*गोपीचन्द माँ ज्ञान से, त्याग्यो देश देश बंगाल ॥*
*रानी सोहल शत्त, बहुरि बारह सौ कन्या ।*
*हय१ गय२ नर कुल बन्धु, जात का पै सो गन्या ॥*
*हीरा कंचल लाल, जटित माणिक अरु मोती ।*
*सिंहासन हर्म्यादि३, दिपत बोलत ध्वनि सोती४ ॥*
*पाँव जलंधी परस तैं, राघव जान जमजाल ।*
*गोपीचन्द माँ ज्ञान से, त्याग्यो देश बंगाल ॥३१८॥*
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गोपीचन्द ने माता मैणावती के ज्ञान से बंगाल देश को त्याग दिया था । गोपीचंद के सोलह सौ रानी और बारह सौ कन्या थी । हाथी१, घोड़े२, कुल के मनुष्य और बान्धवों को तो कौन गिण सकता है ? इतने थे अर्थात् असंख्य थे ।
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हीरा, लाल, माणिक्य और मोतियों से जड़ित स्वर्ण के सिंहासन थे । उनसे महल३ आदि चमकते रहते थे । कवि लोग स्तुति रूप कविता की सुहावनी४ ध्वनि करते थे ।
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ऐसे राजा गोपीचन्द ने जालन्धरनाथजी का चरण स्पर्श करते ही उक्त सब ऐश्वर्य को यमजाल समझकर त्याग दिया था ॥३१८॥
(क्रमशः)
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