परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 20 सितंबर 2025

*५. पतिव्रत कौ अंग ९/१२*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*५. पतिव्रत कौ अंग ९/१२*
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पतिव्रत ही मैं योग है, पतिव्रत ही मैं जाग । 
सुन्दर पतिव्रत राम सौं, वहै त्याग बैराग ॥९॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - राम निरञ्जन निराकार के प्रति एकनिष्ठ भक्ति(पतिव्रत धर्म) में ही योगसाधना, यज्ञ आदि कर्म, त्याग एवं वैराग्य आदि समग्र शुभ कर्म समाहित हैं ॥९॥
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पतिब्रत ही मैं यम नियम, पतिव्रत ही मैं दान । 
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, तीरथ सकल सनान ॥१०॥
इसी प्रकार, यम, नियम, दान दक्षिणा, समस्त तीर्थों में स्नान - इन सब शुभ कर्मों को भी विद्वानों ने राम निरञ्जन निराकार की एकनिष्ठ भक्ति में ही अन्तर्भूत माना है ॥१०॥
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पतिव्रत ही मैं तप भयौ, पतिव्रत ही मैं मौन । 
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, और कष्ट कहि कौंन ॥११॥
तथा कठोर तपश्चर्या, दीर्घकालीन मौनव्रत साधना को भी विद्वानों ने निरञ्जन निराकार की एकनिष्ठ भक्ति में ही परिगणित किया है ॥११॥
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पतिब्रत ही मैं शील है, पतिव्रत मैं संतोख । 
सुन्दर पतिब्रत राम सौं, वह ई कहिये मोख ॥१२॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी यहाँ तक कहते हैं कि यदि कोई साधक निरञ्जन निराकार प्रभु की एकनिष्ठ साधना करता है तो उस को पृथक् रूप से शील(सदाचार) तथा सन्तोष धर्म पालन की आवश्यकता नहीं है । निरञ्जन निराकार की एकनिष्ठ भक्ति से तो उस साधक को संसार में जन्म-मरण परम्परा से भी मुक्ति(मोक्ष) मिल सकती है ॥१२॥
(क्रमशः) 

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