परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग २९/३२*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*६. उपदेश चितावनी कौ अंग २९/३२*
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सुन्दर मांथै बोझ लै, यह तौ अति अज्ञान । 
इनकौ करता और ही, भय भंजन भगवान ॥२९॥
तूं ने ममता के अज्ञानवश कुटुम्ब का भार अपने शिर पर व्यर्थ ही ले रखा है । अरे ! इन का कर्ता तो भयनाशक भगवान् कोई अन्य ही है ॥२९॥
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सुन्दर काहै खैचि ले, अपने मांथै बोझ । 
करता कौं जानै नहीं, तूं रांमां कौ रोझ ॥३०॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – तूँ दूसरे का भार, उस जंगली पशु रोझ के समान, अपने शिर पर क्यों खींच रहा है । अरे ! इनका कर्ता तो कोई अन्य ही है ॥३०॥

सुन्दर तेरी मति गई, समुंझत नहीं लगार । 
कूकर रथ नीचै चलै, हूं खैंचत हौं भार ॥३१॥
अरे ! तुझे तो अज्ञानवश बुद्धिभ्रम हो गया है । तूं इनकी इस कृत्रिम ममता(लगार) को समझ नहीं रहा है । यह तो ऐसी ही बात हुई कि जैसे कोई चलती गाड़ी के नीचे चलता हुआ कुत्ता समझ रहा हो कि इस गाड़ी को मैं ही चला रहा हूँ ॥३१॥
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सुंदर यह औसर भलौ, भजि लै सिरजनहार । 
जैसैं ताते लोह कौं, लेत मिलाइ लुहार ॥३२॥
अरे ! तुझे यह मानवदेह मिल जाने से समझ ले कि तेरे लिये यह शुभ अवसर जा गया है; अतः तूं अब अपने स्रष्टा राम का भजन कर ले । जैसे कि गरम लोहे के दो खण्डों को कोई बुद्धिमान् लुहार कूटपीट कर मिला देता है । (लोहे के दो खण्ड गरम होने पर ही मिलाये जा सकते हैं ।) ॥३२॥
(क्रमशः) 

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