परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 13 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/७0-२)


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卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
दादू जब लग मूल न सींचिये, तब लग हरा न होइ । 
सेवा निष्फल सब गई, फिर पछताना सोइ ॥७०॥
जब तक वृक्ष की जड़ में पानी न देकर डाल - पत्तों पर डाला जायगा, तब तक वृक्ष हरा नहीं हो सकता, पत्ते गलकर विरूप हो जायगा । सीँचने वाले की सेवा निष्फल होगी और अन्त में वह पश्चात्ताप ही करेगा । वैसे ही जब तक प्राणी भगवान् को छोड़कर देवादि की उपासना करेगा, तब तक सुखी नहीं हो सकता । उलटा, उसका जन्मादि दु:ख बढ़ेगा और दु:ख के समय पश्चात्ताप भी करेगा ।
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दादू सीँचे मूल के, सब सींच्या विस्तार । 
दादू सींचे मूल बिन, बाद गई बेगार ॥७१॥ 
जैसे वृक्ष के मूल को पानी देने से उसकी डाली - पत्ते आदि सभी का विस्तार हरा हो जाता है, वैसे ही निष्काम पतिव्रत युक्त निरंजन राम की उपासना करने से देवादि सभी प्रसन्न हो जाते हैं । मूल न सींचकर पत्तों पर पानी डालने से सेवा व्यर्थ जाती है, वैसे ही भगवद् - भजन न करके देवादि की उपासना की जाय, तो उसे परमानन्द की प्राप्ति नहीं होने से उपासक की अभिलाषा पूर्ण नहीं होती । 
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सब आया उस एक में, डाल पान फल फूल ।
दादू पीछे क्या रह्या, जब निज पकड्या मूल ॥७२॥ 
जैसे वृक्ष का मूल पकड़ लेने पर उसके, डाल, पात, फूल, फलादि सभी हाथ में आ जाते हैं, वैसे ही जब निष्काम पतिव्रत साधना द्वारा अपना मूल परब्रह्म पकड़ लिया जाता है, तब बिना पकड़ा क्या रह जाता है ? अन्य सब तो उसी के विवर्त्त हैं । 
(क्रमशः)

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