शुक्रवार, 17 मार्च 2017

= १३३ =

卐 सत्यराम सा 卐
यहु मन बहु बकबाद सौं, बाय भूत ह्वै जाइ ।
दादू बहुत न बोलिये, सहजैं रहै समाइ ॥ 
कोटि यत्न कर कर मुये, यहु मन दह दिशि जाइ ।
राम नाम रोक्या रहै, नाहीं आन उपाइ ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

एक अदालत में मुकदमा था, दो आदमियों ने एक - दूसरे का सिर फोड़ दिया था. जब मजिस्ट्रेट पूछ्ने लगा कारण तो बताओ, तो वे दोनों हंसने लगे उन्होंने कहा, क्षमा करें, दंड जो देना हो दे दें, अब कारण न पूछें...
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मजिस्ट्रेट ने कहा, मैं दंड बिना कारण पूछे दे कैसे सकता हूं? और तुम इतने घबड़ाते क्यों हो कारण बताने से? झगड़ा हुआ, कारण होगा, वे दोनों एक - दूसरे की तरफ देखने लगे, वह कहने लगा, अब तू ही बता दे, वह कहने लगा, अब तू बता दे. कारण ही ऐसा था कि बताने में संकोच लगने लगा, फिर बताना ही पड़ा...
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जब मजिस्ट्रेट ने जोर - जबरदस्ती की कि अगर न बताया तो दोनों को सजा दे दूंगा तो बताना पड़ा, कारण ऐसा था कि बताने जैसा नहीं था, दोनों नदी के किनारे बैठे थे...
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दोनों पुराने मित्र, और एक ने कहा कि मैं भैंस खरीदने की सोच रहा हूं, दूसरे ने कहा कि देख, भैंस तू खरीदना ही मत क्योंकि मैं खेत खरीदने की सोच रहा हूं एक बगीचा खरीद रहा हूं, अब कभी यह भैंस घुस गई मेरे बगीचे में, झगड़ा - झंझट हो जाएगा, पुरानी दोस्ती यह भैंस को खरीद कर दांव पर मत लगा देना, और देख, मैं तेरे को अभी कहे देता हूं कि अगर मेरे बगीचे में भैंस घुस गई तो मुझसे बुरा कोई नहीं ....
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उस आदमी ने कहा, अरे हद हो गई! तूने समझा क्या है? तेरे बगीचे के पीछे हम भैंस न खरीदें? तू मत खरीद बगीचा, अगर इतनी बगीचे की रक्षा करनी है, भैंस तो खरीदी जाएगी, खरीद ली गई, और कर ले जो तुझे करना हो, बात इतनी बढ़ गई कि उस आदमी ने वहीं रेत पर एक हाथ से लकीर खींच दी और कहा, यह रहा मेरा बगीचा और घुसा कर देख भैंस। और दूसरे आदमी ने अपनी अंगुली से भैंस घुसा कर बता दी। सिर खुल गए।
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उन्होंने कहा, मत पूछें कारण, जो दंड देना हो दे दें, न अभी मैंने बगीचा खरीदा है, न इसने अभी भैंस खरीदी है, और हम पुराने दोस्त हैं, अब जो हो गया सो हो गया दोनों पकड़ कर ले आए गए अदालत में....
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तुमने भी कई बार ऐसे बगीचों के पीछे झंझटें खड़ी कर लीं, जो अभी खरीदे नहीं गए...
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तुम जरा अपने मन की जांच - पड़ताल करना, तुम्हें हजार उदाहरण मिल जाएंगे बैठे - बैठे न मालूम क्या - क्या विचार उठ आते हैं, और जब कोई विचार उठता है तो तुम क्षण भर को तो भूल ही जाते हो कि यह विचार है, क्षण भर तो मूर्च्छा छा जाती है, और विचार सच मालूम होने लगता है, वह जो विचार का सच मालूम होना है, वही संसार है. एक बार विचारों से तुम मुक्त हो गए तो संसार से मुक्त हो गए...

Osho
अष्‍टावक्र: महागीता--(भाग--5) प्रवचन--13

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