परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 1 मार्च 2017

= १०६ =



卐 सत्यराम सा 卐
आत्म उपज आकाश की, सुनि धरती की बाट ।
दादू मारग गैब का, कोई लखै न घाट ॥ 
दादू जैसा ब्रह्म है, तैसी अनुभव उपजी होइ ।
जैसा है तैसा कहै, दादू विरला कोइ ॥ 
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साभार ~ Manoj Puri Goswami

**बुध्द ने संदेह से शुरू की यात्रा और शून्य पर पूर्ण की।**

बुद्ध का धम्मं !!
बुद्ध ने ऐसे धम्मं को जन्म दिया, जिसमे ईश्वर की कोई जगह नहीं है। जिसमे परमात्मा को कोई स्थान नहीं है। बुध्द ने संदेह से शुरू की यात्रा और शून्य पर पूर्ण की। संदेह और शून्य के बीच में बुद्ध का सारा बोध है। संदेह को धम्मं का आधार बनाया और शून्य को धम्मं की उपलब्धि। बाकी सब धर्म विश्वास को आधार बनाते है और पूर्ण को उपलब्धि। बुद्ध धम्मं को समझने के लिए जिज्ञासा चाहिए।
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बुद्ध कहते हैं, मानने से नहीं चलेगा। गहरी खोज करनी पड़ेगी। दूसरे धर्म कहते हैं की, पहला कदम बस तुम्हारे भरोसे की बात है, उठा लो, इससे ज्यादा आपको कुछ करने की जरुरत नहीं है। लेकिन बुद्ध का धम्मं तो तुमसे पहले कदम पर पहुचने के लिए भी बड़ी लंबी यात्रा की मांग करता है। वह कहता है, संदेह की प्रगाढ़ अग्नि में जलना होगा, क्योकि तुम जो भरोसा करोगे. वह तुम्हारे बुद्धी पर का भरोसा होगा। अगर बुद्धी में ही रोग है तो उस रोग से जन्मा हुवा विश्वास भी बिमार होगा।
मंदिर अंधेरे में ही नहीं पड़े है वे अँधेरे के सुरक्षा स्थल है। आस्था के नाम सब तरह के पाप वहां चलते है। विश्वास के नीचे सब तरह का झूठ चलता है। धर्म पाखण्ड है क्योंकि शुरुवात में ही चूक हो जाती है। क्योंकि पहले कदम पर ही तुम कमजोर पड जाते हो। तुम्हारा विश्वास तुम्हे पार न ले जा सकेगा. इसीलिए बुद्ध ने कहा, तोडो विश्वास, छोडो विश्वास. सब धारणाए गिरा देनी है। संदेह की अग्नि में उतरना है। दुस्साहसी चाहिए, खोजी चाहिए, अन्वेषक चाहिए, चुनौती स्वीकार करने का साहस निर्माण होना चाहिए.
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बुद्ध कहते है, आश्वासन कोई भी नहीं है । क्योंकि कौन तुम्हे आश्वासन देगा? यहाँ कोई भी नहीं है जो तुम्हारा हाथ पकडे। अकेले ही जाना है मरते वक्त तक। बुध्द ने कहा ‘अत्त दीप भव’ ! अपने ही दीए बनो। मैं मरा तो रोना मत। मैंकौनहूँ? मैं आपको ज्यादा से ज्यादा दिशा दे सकता हूँ। चलना तुम्हें है। मै रहू तो भी चलना तुम्हें है, अगर न रहू तो भी चलना तुम्हें है। झुको मत, सहारा लेना मत, क्योंकि सब सहारे अंतत: लंगड़ा बना देते हैं। सब सहारे तुम्हे अंधा बना देते हैं। सहारे धीर धीरे तुम्हे कमजोर कर देते हैं। बैसाखियां धीर धीरे तुम्हारे पैरों की परिपूर्ति कर देती है। फिर तुम पैरों की फ़िक्र ही छोड़ देते हो। बुद्ध कहते है, संदेह करो, बुद्ध का धम्मं वैज्ञानिक है। संदेह विज्ञान प्राथमिक चरण है। इसीलिए भविष्य में जैसे जैसे लोक मानस वैज्ञानिक होता जाएगा, वैसे वैसे समय बुद्ध के अनुकूल होता जाएगा। 
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जैसे जैसे लोग सोचने और विचार करने की गहनता में उतरेंगे और उधार और बासे विश्वास न करेंगे, हर किसी बात को मान लेने को राजी न होंगे, बगावत बढ़ेगी, लोग हिम्मती होंगे, विद्रोही होंगे, वैसे वैसे बुद्ध की बात लोगो के करीब आने लगेगी। जगत में बुध्द का आदर बढ़ रहा है। जो भी विचारक हैं, चिन्तक हैं, वैज्ञानिक हैं, उनके मन में बुद्ध का आदर रोज बढ़ रहा है। बुद्ध बिना लड़े जीतत रहे हैं। क्योकि बुद्ध कहते हैं, हम तुमसे मानने को नहीं कहते, खोजने को कहते हैं। जब खोज लोगे तो मानेंगे, बिना खोजे कैसे मान लोगे. यह विज्ञान का सूत्र है। सत्य इतना सस्ता नहीं है, कि वह बिना खोजे मिल जाए। सत्य कोई संपति नहीं है, जैसे पिता की वसीयत मरने के बाद पुत्र को मिल जाती है। 
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बुद्ध कहते है, सत्य को खोजना पड़ेगा. भ्रम जाल तथा माया को भुलाकर उसे ढूंढना होगा और तुम्हारे भीतर भी कमजोरियां बहुत हैं। थक जाते तो कहीं भी भरोसा करके रुक सकते हो, किसी भी मंदिर के सामने, थके हारे सर झुका सकते हो, बस इसीलिए नहीं की तुम्हें कोई जगह मिल गयी, जहा सर झुकाने का मुकाम आ गया था, बस सिर्फ इसीलिए की अब तुम थक गए, अब और नहीं खोजा जाता. बुद्ध तुम्हें कोई जगह नहीं देते, तुम्हारे कमजोरी के लिए वहाँ कोई जगह नहीं होती। बुद्ध कहते हैं, ज्ञान तो मिलता है, आत्म परिष्कार से, शास्त्र से नहीं, सत्य कोई धारना नहीं है। सत्य कोई सिध्दांत नहीं है। सत्य तो जीवन का निखार है। सत्य तो ऐसा है, जैसे सोने को कोई आग में डालता है तो निखरता है, जलता है, पिघलता है, तड़पता है। जो व्यर्थ है जल जाता है, सार्थक बचता है। सत्य तो तुममे है, कूड़े करकट में दबा है और जब तक तुम आग से न गुजरो, तुम उस सत्य को कैसे खोज पाओगे?
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बुद्ध कहते है, जल्दी मत करना भरोसे करने की, भरोसा तभी करना जब संदेह करने की जगह ही न रह जाए, लेकिन दूसरे धर्म संदेह के विपरीत केवल भरोसा करने की सलाह देते है। संदेह के विपरीत श्रध्दा करने की सलाह देते हैं। लेकिन बुद्ध संदेह करने की पूरी छूट देते हैं। इतना संदेह करो कि, आखिर में तुम्हारा संदेह नष्ट हो जाए और केवल परिणाम बच जाए, जिसे तुम ढूढ रहे हो। बुद्ध कहते है, दबे हुए सड़े को बाहर निकालो, उससे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है, उसे रोशनी में लाओ।बुद्ध ने संदेह को जन्म दिया है। बुद्ध का युग कभी भी बुद्धिवादी नहीं था। केवल बुद्ध ही बुध्दिवादी थे। उन्होंने लंबे और कठिन मार्ग से यात्रा की थी। शार्टकट मार्ग की कोइ गुंजाइश नहीं थी। 
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तुम जिसे श्रध्दा मानते हो, वह शार्टकट का रास्ता है। तुम बिना गए, बिना कहीं पहूंचे, बिना कुछ किये श्रध्दा कर लेते हो। ऐसी श्रध्दा नपुंसकता के सिवा कुछ नहीं है। तुम्हारे शास्त्र लिखते हैं, नास्तिकों की बाते मत सुनना, नास्तिक कुछ कहे तो कान में उंगलिया डाल देना। यह तो भयभितता है। डरपोकता के सिवा कुछ नहीं है। ऐसे धर्म के शास्त्र कमजोरी सिखाते हैं, जो आस्था इतनी डरपोक है कि नास्तिक की बात सुनाने से कांपती हो। इससे तो नास्तिक बेहतर है, कम से कम उनके शास्त्र में कहीं नहीं लिखा कि आस्तिक की बात सुनने से डरना है। नास्तिक कभी डरता नहीं है, लेकिन आस्तिक हमेशा डरते हैं।
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बुद्ध ने संदेह को जन्म दिया है, संदेह करते करते तूम संदेह से मुक्ति पा लेते हो। जहाँ संदेह खत्म होता है वहाँ सूरज उगता है। परमात्मा असहाय्य अवस्था है, इसकी पुकार होती है। जिसको तुमने झुकना समझा है, वह कहीं तुम्हारे कांपते और भयभीत पैरों की कमजोरी तो नहीं है। जिसको तुमने समर्पण समझा है, वह तुम्हारी कायरता तो नहीं?
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बुद्ध ने तुमसे परमात्मा नहीं छीना, उन्होंने तुमसे तुम्हारी बेचारगी छीनी है। बुद्ध ने तुमसे मंदिर नहीं छीने, तुम्हारे कमजोरी के शरणस्थल छीने है। बुद्ध ने कहा, तुम्हें खुद ही चलना है, बुद्ध ने तुम्हारे पैरों को सदियों सदियों के बाद फिर से खून दिया है। तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत दी है। बुद्ध उसी को सदधर्म कहते हैं, जो तुम्हे तुम्हारे भीतर छिपे हुए सत्य से परिचित कराए। झूठी आस्थाओं में नहीं, धारणाओं में नहीं, शास्त्रों में नहीं, व्यर्थ के शब्दजालों में नहीं।
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बुद्ध ने आत्मा के स्वरूप को शून्य कहा है। उन्होंने आत्मा शब्द में खतरा देखा. क्योंकि उन्हें लगा तुम किसी चीज के तलाश में हो, जो भीतर रखी है। जब तुम कहते हो तुम्हारे भीतर आत्मा है, जैसे की तुम्हारे घर में कुर्सी रखी हो, तुम्हारे भीतर आत्मा रखी है, आत्मा कोई वस्तु है कि गए भीतर और पा गए। बुद्ध ने आत्मा शब्द का शब्द प्रयोग नहीं किया क्योकि आत्मा से जडता का पता लगता है। आत्मा शब्द का मतलब यह हुआ की कुछ तुम्हारे भीतर ठहरा हुआ है, रुका हुआ है, कुछ तुम्हारे भीतर मौजूद है। तो जो मौजूद ही है, वह वस्तुतः जड है। बुद्ध ने कहा था, तुम ही तुम्हारे शास्ता हो, तुम ही तुम्हारे गुरु हो, तुम ही तुम्हारे शास्त्र हो और तुम्हारे चैतन्य के सिवाय तुम में और कोई नहीं है।

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