परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 2 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/४०-४२)



卐 सत्यराम सा 卐 
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
**= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =** 
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*पतिव्रत*
जिसका तिसको दीजिये, सांई सन्मुख आइ ।
दादू नख शिख सौंप सब, जनि यहु बँट्या जाइ ॥४०॥
४० - ४१ में कहते हैं - पतिव्रत से कभी न हटो=नख से शिखा पर्यन्त सब शरीर जिस परमेश्वर का रचा हुआ है, उसी परमेश्वर की आज्ञा में रहते हुये यह शरीर उसे ही समर्पण कर देना चाहिए और पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए कि कहीं स्थूल तन तथा मन, बुद्धि, इन्द्रियादि सूक्ष्म शरीर भगवत् परायणता को छोड़कर अपने - अपने विषयों की ओर बंट कर, मायिक पदार्थों में ही न लग जायें ।
सारा दिल सांई सौं राखे, दादू सोइ सयान ।
जे दिल बँटे आपना, सो सब मूढ अयान ॥४१॥
जो अपना मन ईश्वर - चिन्तन करते हुये पूर्ण रूप से ईश्वर में ही लगावे रखता है, वही बुद्धिमान् है, और जो मन को भगवत् चिन्तन से हटा कर मायिक पदार्थों में लगा देते हैं, वे सब जीव और ब्रह्म का भेद मानने वाले अज्ञानी प्राणियों में भी अति मूढ़ हैं ।
*विरक्तता*
दादू सारों सौं दिल तोर कर, सांई सौं जोरे ।
सांई सेती जोड़ कर, काहे को तोरे ॥४२॥
वैराग्यपूर्वक प्रभु में निरँतर मन लगाने की प्रेरणा कर रहे हैं - देवी, देव, लोग, कुटुम्ब, देह, घर आदि सँपूर्ण मायिक प्रपँच से मन को हटाकर भगवान् में ही लीन करे और जब भगवान् में मन स्थिर हो जाय, तब किसलिये भगवत् चिन्तन से चित्त हटावे, नहीं हटाना चाहिए । भक्त के काम तो भगवान् कर ही देते हैं । 
(क्रमशः)

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