卐 सत्यराम सा 卐
दादू इस संसार में, ये द्वै रत्न अमोल ।
इक सांई अरु संतजन, इनका मोल न तोल ॥ 
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साभार ~ पंडित ललित ब्राह्मण
रामायण कथा का एक अंश, जिससे हमे सीख मिलती है "एहसास" की...
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श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी ! की यकायक श्री राम के चरणों मे कांटा चुभ गया !
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श्रीराम रुष्ट या क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे ! बोले - "माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी ?"
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धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"
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प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से आए, तो आप नरम हो जाना ! कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना ! मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे अघात मत करना"
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श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा - "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ? फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी व्याकुलता क्यों ?"
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श्री राम बोले- "नहीं...नहीं माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नहीं, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा !"
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"हृदय विदीर्ण !! ऐसा क्यों प्रभु ?" धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं !
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"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि... इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम निकले होंगे और ये शूल उनके पगों मे भी चुभे होंगे ! मैया, मेरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना..!!"

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