मंगलवार, 14 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/२१-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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*स्वप्नै मैं मथुरा गयौ, स्वप्ने मैं हरिद्वार ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नहिं बदरी केदार ॥२१॥*
स्वप्न में कोई मथुरा चला जाय, दूसरा हरिद्वार जा पहुँचे या और भी आगे बदरीनाथ केदारनाथ पहुँच जाय, जागने पर दोनों ही समझ जाते हैं कि यह सब स्वप्न की कल्पना थी, वस्तुतः कोई किसी तीर्थ में नहीं गया ॥२१॥ 
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*स्वप्नैं मैं काशी मुवौ, स्वप्नै मगहर मांहिं ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, मुक्ति रासिभौ नाहिं ॥२२॥*
स्वप्न में कोई काशी में जा मरा, दूसरा मगहर क्षेत्र में; जागने पर पता लगा कि न काशी में मरनेवाले की मुक्ति हुई, न मगहर क्षेत्र में मरनेवाले को रासभ(गर्धभ) योनि मिली । क्योंकि वह मरना स्वप्नावस्था का काल्पनिक ही तो था ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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