परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 23 मार्च 2017

= १४५ =


卐 सत्यराम सा 卐
एक मना लागा रहै, अंत मिलेगा सोइ ।
दादू जाके मन बसै, ताको दर्शन होइ ॥ 
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साभार ~ Nishi Dureja

एक गुरु एक दिन अपने शिष्यों को एक खेत में ले गए और कहा कि देखो इस खेत के मालिक की कला ! 
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उस खेत में आठ बड़े गड्डे थे और नौवाँ गड्डा खोदा जा रहा था। शिष्य भी नहीं समझ पाए। पूरा खेत खराब हो गया था। उन्होंने कहा, यह हो क्या रहा है ! 
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मालिक से पूछने पर पता चला कि कुआ खोद रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तो पूरा खेत कुआ ही बना जा रहा है ! एक भी गड्डे में पानी नहीं है ! 
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मालिक ने कहा, आठ हाथ खोदकर देखा कि पानी नहीं आता, तो सोचा, यहां से छोड़ो। फिर दूसरा खोदकर दस हाथ देखा, वहां भी पानी नहीं आया। वहा से भी छोड़ो। फिर तीसरा खोदा, वहां भी पानी नहीं आया। ऐसा खोदते-खोदते अब नौवां खोद रहे हैं।
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रूमी ने कहा, इस आदमी को ठीक से समझ लो। यह आदमी बड़ा प्रतिनिधि है। इसी तरह के लोग हैं जमीन पर। वे एक गड्डा खोदते हैं दस हाथ, फिर सोचते हैं, पानी नहीं आया, छोड़ो। फिर दो-चार साल बाद दूसरा गड्डा खोदते हैं। फिर तीसरा गड्डा खोदते हैं। 

अगर यह आदमी एक ही जगह खोदता चला जाता, तो पानी कभी का आ जाता। और जिस ढंग से यह खोद रहा है, पूरा खेत भी खराब हो जाएगा और पानी कभी आने वाला नहीं है।
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तो आप जब खोदना शुरू करें, तो खोदते ही चले जाना। बार-बार छोड्कर अलग-अलग जगह खोदने के परिणाम घातक होंगे। 
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सतत लगे ही रहना। पानी तो निश्चित भीतर है। अगर बुद्ध के कुएं में आया, अगर कृष्ण के कुएं में आया, तो आपके कुएं में भी आएगा। आप उतना ही सब कुछ लिए हुए पैदा हुए हैं, जितना बुद्ध या कृष्ण पैदा होते हैं। फर्क इतना ही है कि आपने ठीक से खोदा नहीं है, या खोदा भी है तो अनेक जगह खोदा है।
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सतत खुदाई चाहिए; जल के स्रोत भीतर हैं। खोदते ही आप चले जाएं। पहले तो कंकड़ पत्थर ही हाथ लगेंगे। फिर सूखी भूपि ही हाथ लगेगी' फिर धीरे-धीरे गीली भूमि आनी शुरू होगी। 
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जब आपके ध्यान में शांति मालूम पड़ने लगे, समझना कि गीली भूमि शुरू हो गई। और अब छोड़ना मत, क्योंकि शांति पहली खबर है आनंद की। जमीन गीली होने लगी। पानी पास है।
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शांत मन खबर दे रहा है कि बहुत दूर नहीं है आनंद का स्रोत। थोड़ी मेहनत, थोड़ा श्रम, थोड़ी लगन, थोड़ी प्रतीक्षा और थोड़ा धैर्य, जलस्रोत निश्चित ही फूट पड़ने को है।

[ कठो उपनिषद् : 15 ]
Arun Garg

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