परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 23 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/१४-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
*= वेद के कर्मकाण्ड की उपयोगिता =*
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*ब्रह्मचर्य गृहचर्य हू, वानप्रस्थ संन्यास ।*
*अपने अपने धर्म तै, ह्वै स्वर्गापुर बास ॥१४॥* 
इसी तरह चार आश्रमों की व्यवस्था कर ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य-पालन से गृहस्थ को गार्हस्थ्य धर्म पालन करने से, वान प्रस्थी को वानप्रस्थ व्यवस्था पालन करने से, सन्यासी को संन्यास धर्म का पालन करने से स्वर्ग(जो सुख की अन्तिम पराकाष्टा है) की प्राप्ति बतलायी गयी ॥१४॥  
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*= उपासनाकाण्ड की उपयोगिता =*
*जोग यज्ञ जप तप क्रिया, दान पुन्य निहगर्ब ।*
*तीर्थ ब्रत अरु त्याग पुनि, यम निमयादिक सर्ब ॥१५॥*
(अब कवि उपासना काण्ड की उपयोगिता बता रहे हैं-) जो स्वर्ग नहीं चाहते उनके लिये वेद भगवान् ने उपासना काण्ड नाम से जीवन को सफल बनाने का दूसरा रास्ता बताया । वह है- साधक योग, यज्ञ, जप, तप, दान, पुण्य आदि क्रियायें निष्काम होकर करे । इसी तरह तीर्थ, व्रत, यम-नियम आदि कर्म भी फलत्याग की भावना से करता रहे ॥१५॥  
(क्रमशः)

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