सोमवार, 20 मार्च 2017

= विन्दु (२)९५ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९५ =*
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“दादू कहतां सुतानां राम कहि, लेतां देतां राम ।
खातां पीतां राम कहि, आत्म कमल विश्राम ॥” 
कहते, सुनते, लेते, देते, खाते, पीते आदि सभी कार्यों के साथ सब काल राम का स्मरण होता रहता है, तभी जीवात्मा के हृदय - कमल को शांति मिलती है । 
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“दादू सबही वेद पुराण पढ़ि, नेटि नाम निर्धार ।
सब कुछ इनहीं मांहिं हैं, क्या करिये विस्तार ॥” 
संपूर्ण वेद पुराणादि के पढ़ लेने पर भी अन्त में यही निर्णय होता है कि भगवत् नाम-स्मरण ही कर्तव्य है । इन भगवान् के नामों के स्मरण से सकामियों को अर्थ, धर्मादि और निष्कामियों को चित्त निर्मलता से मुक्ति पर्यन्त सभी कुछ प्राप्त हो जाता है । अतः निरंतर नाम - स्मरण करते रहना चाहिये । कहा भी है - 
“गमन समय नेड़ो जब आयो ।
सब सन्तन को नाम दिढायो ॥” 
जनगोपाल वि० १५ । ३२ । 
उक्त प्रकार सब संतों को नाम - स्मरण साधना दृढ़ करा कर पुनः आज्ञा दी कि - अब आप लोग निरंतर निरंजन राम का स्मरण करते हुये ही जीवन व्यतीत करना, मेरे राम को अब प्रभु की आज्ञा अपने पूर्व रूप प्राप्त करने की हो गई है । अतः मैं अब जाने वाला ही हूँ । फिर स्वामी दादूदयालुजी ने एक अद्भुत लीला दिखाई कि - वहां जो शिष्य संत थे उन सबको दादूजी महाराज के शरीर पर एक अद्वैत अवस्था दिखाई दी अर्थात् दादूजी सबको सम शांत अद्वैत ब्रह्म स्वरूप ही भासने लगे । उस अवस्था को दिखा - कर दादूजी ने सब शिष्यों की मोह रूप पाश को उसो क्षण काट डाला । सोइ जनगोपालजी ने कहा है - 
“तन पर एक अवस्था ठाटी, 
मोह पाश सब हिन की काटी ॥” 
वि० १५ । ३३ । 
फिर टीलाजी ने गरीबदासजी को संकेत किया कि मैंने भूतकाल के सन्तों को कहते सुना था स्वामीजी ६ मास ही और रहेंगे सो पूछना हो वह सब पूछ लें ।
(क्रमशः)

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