परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 22 मार्च 2017

= चेतावनी का अंग =(९/१-३)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= अथ चेतावनी का अँग ९ =*
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भगवान् को निष्काम पतिव्रत रूप अनन्यता प्रिय है । उसी की चेतावनी देने के लिए "चितावनी का अँग" कथन करने में प्रवृत्त मँगल कर रहे हैं - 
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दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: । 
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥ १ ॥ 
जिनकी दी हुई चेतावनी द्वारा साधक मायिक प्रपँच से पार होकर परब्रह्म को प्राप्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सन्तों को हम प्रणाम करते हैं । 
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दादू जे साहिब को भावे नहीं, सो हम तैं जनि होइ । 
सद्गुरु लाजे आपना, साधु न मानैं कोइ ॥ २ ॥ 
२ में अपने को ही सावधान कर रहे हैं - जो परमात्मा को प्रिय न हों ऐसे सँकल्प, वचन और कार्य का व्यवहार हमसे कभी भी नहीं होना चाहिए । कारण, ऐसे व्यवहार से अपने सद्गुरु को भी लज्जित होना पड़ता है और न कोई सँत ही अच्छा मानते हैं । 
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दादू जे साहिब को भावे नहीं, सो सब परहर प्राण । 
मनसा वाचा कर्मना, जे तूँ चतुर सुजाण ॥ ३ ॥ 
३ - १५ में सभी प्राणियों को सचेत कर रहे हैं - हे प्राणधारी जीव ! यदि तू व्यवहार में चतुर और समझदार है तो ईश्वर को जो प्रिय नहीं लगे सभी व्यवहार त्याग दे और भगवान् को प्रिय लगने वाली अनन्य भक्ति मन, वचन और कर्म से कर । मन से ध्यान, वाणी से नाम उच्चारण और शरीर से सँत - सेवादि कर ।
(क्रमशः)

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