परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 22 मार्च 2017

= विन्दु (२)९५ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९५ =*
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*= गरीबदासजी के प्रश्न और उनके उत्तर =*
दादूजी महाराज का वचन सुनकर गरीबदासजी ने जब दादूजी के शरीर पर हाथ फेरा तो वह शरीर दीपक की ज्योति के समान ज्ञात हुआ अर्थात् दीपक की ज्योति के बीच से जैसे लोह आदि की शलाका निकल जाती है, वैसे ही दादूजी के शरीर से गरीबदासजी का हाथ निकल गया, शरीर के आकार से हाथ रुका नहीं । दादूजी का शरीर दृष्टि में तो आता था किन्तु मुष्टि से पकड़ा नहीं जाता था । इससे गरीबदासजी आदि सभी संतों को अति आश्चर्य हुआ था । 
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उक्त आश्चर्य को देखकर गरीबदासजी ने हाथ जोड़कर दादूजी महाराज से प्रार्थना की - हे स्वामिन् ! जब आपने अपने शरीर को अपनी योग शक्ति से इतना विलक्षण बना लिया है कि जो दीखते हुए भी वास्तव में नहीं के समान है, तो फिर आप इसको अधिक दिन भी यहां रख सकते हैं । अतः हे अन्तर्यामी स्वामिन् ! हम लोगों की प्रार्थना से कुछ दिन इस शरीर को यहाँ और भी रखिये । इसके यहां रहने से लोकों का कल्याण ही होगा । अतः अवश्य कृपा कीजिये । 
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गरीबदासजी की प्रार्थना सुनकर दादूजी महाराज ने कहा - भैया ! हरि की आज्ञा जिस प्रकार होती है, उसी प्रकार ही उनकी आज्ञा में हम रहते हैं । सबको हरि आज्ञानुसार रहना होता है । सब ही हरि के अधीन हैं । हरि की आज्ञा से ही यह शरीर धारण किया है और हरि की आज्ञा से ही इसको त्यागकर पूर्वरूप को प्राप्त किया जायगा । देखो बादल आदि भी हरि की आज्ञा का पालन करते हैं - 
*“दादू एक शब्द से उनवे, वर्षण लागे आय ।* 
*एक शब्द से बीखरे, आप आप को जाय ॥”* 
अतः हरि आज्ञा सर्वथा सबको ही माननीय होती है इसमें संशय नहीं करना चाहिये । संशय से हानि ही होती है लाभ नहीं होता । 
*“नूर - तेज ज्यौं ज्योति है, प्राण पिंड यूँ होय ।* 
*दृष्टि मुष्टि आवे नहीं, साहिब के वश सोय ॥”* 
दादूजी महाराज के उक्त वचन सुनकर गरीबदासजी ने कहा - स्वामिन् ! यद्यपि आपके कथनानुसार आप का शरीर दुर्गंध आदि विकारों से रहित और सदा नूतन बना रहेगा, इसमें मुझे कोई संशय नहीं हो रहा है किन्तु इस चमत्कार से जनता भी यहां अधिक आया करेगी, उस से हमारे भजन में अति विघ्न होता रहेगा तथा हम शव पूजक भी कहलायेंगे । शव पूजन से लोग हमारी निन्दा भी करेंगे और आपके सिद्धान्त से भी शव पूजन सर्वथा विपरीत पड़ेगा । शव की उपासना मेरे विचार से किसी प्रकार भी उचित नहीं ज्ञात होती है । अतः शरीर का रखना तो हम लोगों को अभीष्ट नहीं है । आप कोई अन्य ही आश्रय बताने की कृपा करें । 
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गरीबदासजी के उक्त विचारों को सुनकर दादूजी महाराज ने कहा - अच्छा फिर यहाँ पर एक दीपक ज्योति के समान ज्योति निरंतर जलती रहेगी । उसमें घृत, तैल भी नहीं डालना पड़ेगा, वह बिना घृत, तैल के अखंड - ज्योति सदा रहेगी । उस ज्योति से प्रार्थना करने पर आप लोगों को अभीष्ट की प्राप्ति होती रहेगी किन्तु उसका आश्रय लेकर कुमार्ग में प्रवृत्त नहीं होना । यदि कुमार्ग में लग जाओगे तो वह अखंड ज्योति विलीन हो जायगी । 
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दादूजी महाराज के वचन सुनकर गरीबदासजी ने अपने मन में विचार किया कि - बिना घृत, तैल के अखंड ज्योति जलता रहना भी बहुत बडा चमत्कार है । इससे हमारी निन्दा न होकर अति प्रतिष्ठा अवश्य होगी । अति प्रतिष्ठा भी साधन में महान् विघ्न ही सिद्ध होती है । हम लोग उस ज्योति रूप चमत्कार से फूलकर भजन - साधन तो छोड़ देंगे और पंडे बन जायेंगे । पंडा पना करने से अन्त में निश्चय ही हमारा पतन ही होगा । इसमें कुछ भी संशय नहीं है । इस लिये करामात को तो किसी प्रकार नहीं अपनाना चाहिये । वह प्रभु भजन में विघ्न रूप ही होती है । 
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यह निश्चय करके गरीबदासजी ने कहा - स्वामिन् ! आप तो परम दयालु और सर्व प्राणियों के रक्षक हैं किन्तु उक्त प्रकार अखंड ज्योति रहना भी बहुत बड़ी करामात है । इस करामात को देखने के लिये बहुत सी जनता यहां आया करेगी, उस अत्याधिक आने जाने रूप कार्य से हम लोगों के भजन में विघ्न ही पड़ेगा । अतः ऐसी करामात तो हम नहीं लेना चाहते हैं और आप भी हम लोगों को निरंतर निरंजन राम का भजन करने का ही उपदेश देते रहे हैं । और अब भी दे रहे हैं । इससे भजन में विघ्न रूप चमत्कार से हमारा निरंतर भजन कैसे चलेगा ? इस लिये हमें तो आप अन्य ही कोई जो भजन साधक हो ऐसा आश्रय देने की ही कृपा करैं, यही हमारी हार्दिक प्रार्थना है । 
(क्रमशः)

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