परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 29 मार्च 2017

= विन्दु (२)९६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*= स्मृति =*
“दादू करणी ऊपर जाति है, दूजा सोच निवार । 
मैली मध्यम हो गये, उज्वल ऊंच विचार ॥” 
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*इतिहास -* 
“केते मर माटी भये, बहुत बड़े बलवंत । 
दादू केते हो गये, दाना देव अनन्त ॥” 
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*पुराण -* 
“दादू धरती एक डग, दरिया करते फाल । 
हाकों पर्वत फाड़ते, सो भी खाये काल ॥” 
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*अवतार चरित -* 
“मुख बोल स्वामी तू अन्तर्यामी, 
तेरा शब्द सुहावे रामजी ॥ टेक ॥ 
धेनु चरावन बेनु बजावन, 
दर्श दिखावन कामिनी ॥ १ ॥ 
बिरह उपावन तप्त बुझावन, 
अंग लगावन भामिनी ॥ २ ॥ 
संग खिलावन रास बनावन, 
गोपी भावन भूधरा ॥ ३ ॥ 
दादू तारन दुरित निवारण, 
संत सुधारण रामजी ॥ ४ ॥ 
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*अन्तरंग रास -* 
“घट घट गोपी घट घट कान्ह, 
घट घट राम अमर सुस्थान ॥ टेक ॥
गंगा यमुना अन्तरवेद, 
सरस्वती नीर बहे प्रस्वेद ॥ १ ॥ 
कुंज केलि तहँ परम विलास, 
सब संगी मिल खेलैं राम ॥ २ ॥ 
तहँ बिन बैना बाजैं तूर, 
विकसे कमल चन्द अरु सूर ॥ ३ ॥ 
पूरण ब्रह्म परम परकास, 
तहँ निज देखे दादू दास ॥” 
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*तीर्थ -* 
“काया कर्म लगाय कर, तीरथ धोवे आय । 
तीरथ मांहीं कीजिये, सो कैसे कर जाय ॥ 
जहँ तरिये तहँ डूबिये, मन में मैला होय । 
जहँ छूटे तहँ बंधिये, कपट न सीझे कोय ॥” 
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*साहित्य -* 
“शोधन पीवजी साज सँवारी, 
अब वेगि मिलो तन जाइ वनवारी ॥ टेक ॥ 
साज श्रृंगार किया मन मांहीं, 
अजहुँ पीव पतीजे नांहीं ॥ १ ॥ 
पीव मिलन को अह निशि जागी, 
अजहूँ मेरी पलक न लागी ॥ २ ॥ 
जतन जतन कर पंथ निहारूं, 
पिव भावे त्यों आप संवारूं ॥ ३ ॥ 
अब सुख दीजे जाउं बलिहारी, 
कहै दादू सुन विपति हमारी ॥ ४ ॥” 
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*नारी धर्म -*
“पतिव्रता गृह आपने, करे खसम की सेव । 
ज्यों राखे त्योंही रहै, आज्ञाकारी टेव ॥ 
दादू नीच ऊँच कुल सुन्दरी, सेवा सारी होय । 
सोइ सुहागिनी कीजिये, रूप न पीजे धोय ॥”
(क्रमशः)

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