परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

मंगलवार, 28 मार्च 2017

= विन्दु (२)९६ =


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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*= वेदांग षट् =* 
*१. शिक्षा -* 
“दादू शब्दैं शब्द समाइ ले, परमातम से प्राण । 
यहु मन मन से बंध ले, चित्तैं चित्त सुजाण ॥” 
*२. कल्प -* 
“दादू नाम निमित रामहि भजे, भक्ति निमित भज सोय । 
सेवा निमित सांई भजे, सदा सजीवन होय ॥” 
*३. व्याकरण -*
“शब्दैं बंध्या सब रहै, शब्दैं सब जाय ।
शब्दैं ही सब ऊपजे, शब्दैं सबै समाय ॥” 
*४. निरुक्त -* 
“रत्न पदारथ माणिक मोती, हीरों का दरिया । 
चिन्तामणि चित राम धन, घट अमृत भरिया ॥ 
ब्रह्म गाय त्रय लोक में, साधू अस्थन पान । 
मुख मारग अमृत झरै, कत ढूंढे दादू आन ॥” 
*५. ज्योतिष -* 
“सूना घट सोधी नहीं, पंडित ब्रह्मा पूत ।
आगम निगम सब कथे, घर में नाचे भूत ॥ 
सोधी नहीं शरीर की, कहैं अगम की बात । 
जान कहावैं बापुड़े, आयुध लीये हाथ ॥”
*६. पिंगल -* 
“दादू पद जोड़े साखी कहै, विषय न छाड़े जीव । 
पानी घाल बिलोइये, क्यों कर निकसे घीव ॥
दादू दो दो पद किये, साखी भी दो चार । 
हम को अनुभव ऊपजी, हम ज्ञानी संसार ॥” 
(क्रमशः)

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