परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

मंगलवार, 28 मार्च 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
*= त्रिगुणात्मिका सृष्टि =*
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*तमगुण रजगुण सत्वगुण, तिनकौ रचित शरीर ।*
*नित्य मुक्त यह आतमा, भ्रम तें मानत सीर ॥३॥*
मनुष्य का यह शरीर तम, रज तथा सत्त्व गुणों से बना हुआ है और आत्मा नित्य मुक्त है । भ्रम के कारण ही मनुष्य अपनी आत्मा का सम्बन्ध इस देह से या इसके द्वारा किये कर्मों से मानता है ॥३॥
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*तीन गुननि की वृत्ति महिं, है थिर चंचल अंग ।*
*ज्यौं प्रतिबिंब हि देखिये, हालत जल के संग ॥४॥*
जैसे जल में पड़ा हुआ प्रति बिम्ब जल के हिलने से हिलता हुआ दिखायी देता है, उसी तरह इस शरीर की सृष्टि त्रिगुणमयी होने से अंग-प्रत्यंग एवं इसकी इन्द्रियाँ चंचल दिखायी देती है । आत्मा के उनमें प्रतिबिम्ब पड़ने से आत्मा भी चंचल दिखायी देता है । पर बात वस्तुतः ऐसी नहीं ॥४॥
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*तीन गुननि की ब्रत्य जे, तिन में तैसौ होइ ।*
*जड सौं मिलि जडवत भयौ, चेतन सत्ता खोइ ॥५॥*
इन्द्रियों की भी त्रिगुणात्मिका वृत्ति होने से उनमें तीनों गुणों के भाव दिखायी देते हैं, ब्रह्म का प्रतिबिम्ब आत्मा इन जड़ इन्द्रियों से मिलकर जड़ता धारण कर लेता है और अपना चेतनस्वरूप खो बैठता है ॥५॥
(क्रमशः)

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