परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 30 मार्च 2017

= विन्दु (२)९६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*= षट् दर्शन =* 
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*१. न्याय* - 
न्याय में वीतराग के जन्म का अभाव कहा है और दादूजी ने भी वैराग्य की ओर संकेत किया है - 
“दादू एक सुरति से सब रहा, पंचों उनमनि लाग । 
यहु अनुभव उपदेश यहु, यहु परम योग वैराग ॥” 

“दादू सब बातन की एक है, दुनियां से दिल दूर ।
सांई सेती संग कर, सहज सुरति ले पूर ॥” 
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*२. वैशेषिक* - 
वैशेषिक ने ईश्वर अनुग्रह द्वारा यथार्थ ज्ञान से मुक्ति मानी है, वैसे ही दादूवाणी में भी कहा है - 
“दादू सब संसार तज, रहै निराला होय । 
अविनाशी के आश्रय, काल न लागे कोय ॥” 

वृत्तिज्ञान - 
“दादू सेवा सुरति से, प्रेम प्रीति से लाय । 
जहँ अविनाशी देव है, तहँ सुरति बिना को जाय ॥” 
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*३. धर्म मीमांसा* - 
“कर्मों के वश जीव है, कर्म रहित सो ब्रह्म । 
जहँ आतम तहं परमातमा, दादू भागा भ्रम ॥” 

“राहु मिले ज्यों चन्द को, गहण मिले ज्यों सूर । 
कर्म मिले यूं जीव को, नख शिख लागे पूर ॥” 

“दादू चन्द मिले जब राहु को गहण मिले जब सूर । 
जीव मिले जब कर्म को, राम रह्या भरपूर ॥” 

“कर्म कुहाड़ा अंग वन, काटत बारंबार । 
अपने हाथों आपको, काटत है संसार ॥” 

“कर्म फिरावे जीव को, कर्मों को करतार । 
करतार को कोई नहीं, दादू फेरनहार ॥” 

संकर्षण कांड - संकर्षण कांड में तथा पंचरात्र में भी उपासना का ही वर्णन है, वही वाणी में भी देखिये - 
“दादू ऐकै दशा अनन्य की, दूजी दशा न जाय । 
आपा भूले आन सब, ऐकै रहै समाय ॥” 
(क्रमशः)

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