परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

गुरुवार, 30 मार्च 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/८-९) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
*= रजोगुण की वृत्ति =*
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*राजस गुण की वृत्ति ये, कर्म करै बहु भांति ।* 
*सुख चाहे अरु उद्यमी, जक न परै दिन राति ॥८॥* 
इसी प्रकार रजोगुण की चेष्टायें ये हैं--रजोगुणप्रधान व्यक्ति तरह तरह के कर्म(चेष्टा) करता रहता है, उन कर्मों से सुख की इच्छा करता रहता है, उसके लिये बराबर उद्यम करता रहता है, उस व्यक्ति को रात-दिन में कभी निश्चल रहना नहीं सुहाता ॥८॥ 
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*राजस गुण गुण की वृत्ति तें, सुख दुख आवहिं दोइ ।* 
*ते सब मानैं आपु कौं, क्यौ करि छूटै सोइ ॥९॥*
इन रजोगुण की चेष्टाओं से शरीर पर जो भी सुख-दुःख आते हैं, प्रतिबिम्बित आत्मा अपने ऊपर मान बैठता है और सोचता है कि मैं इनसे कैसे छुटकारा पाऊँ ! ॥९॥
(क्रमशः)

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