परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

बुधवार, 29 मार्च 2017

= १५७ =


卐 सत्यराम सा 卐
शून्य हि मार्ग आइया, शून्य हि मारग जाइ ।
चेतन पैंडा सुरति का, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

****माया-संसार और बिचार****
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जब तक बुद्धि है, विचारों से भरा हुआ जाल है तुम्हारे भीतर तब तक संसार है। और तब तक माया ही माया है इसको ख्याल में लें संसार बाहर नहीं है, बुद्धि की विचारणा में है संसार ध्यान का अभाव है..
निर्ममो निरहकारो निष्काम: शोभते बुध:।
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और वह जो बुद्धत्व को प्राप्त हो गया उसके भीतर कौन - सी क्रांति घटती? 
न तो उसके भीतर ममता रह जाती, न अहंकार रह जाता, न कामना रह जाती विचार के जाते ही ये तीन चीजें चली जाती हैं कामना चली जाती बिना विचार के कामना चल नहीं सकती कामना को चलने के लिये विचार के अश्व चाहिए विचार के घोडों पर बैठकर ही कामना चलती है अगर तुम्हारे भीतर विचार नहीं तो तुम कामना को फैलाओगे कैसे? किन घोड़ों पर सवार करोगे कामना को? 
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निर्विचार चित्त में तो कामना की तरंग उठ ही नहीं सकती इसलिए कामना मर जाती है विचार के साथ ममता मर जाती। किसको कहोगे मेरा? 
किसको कहोगे अपना? 
किसको कहोगे पराया? 
मेरा और तेरा विचार का ही संबंध है जहां विचार नहीं वहां कोई मेरा नहीं, कोई तेरा नहीं जहां विचार नहीं है वहां सब संबंध विसर्जित हो गये सब संबंध विचार के हैं ....
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और तीसरी चीज अहंकार जहां विचार नहीं वहां मैं भी नहीं बचता क्योंकि मैं सभी विचारों के जोड़ का नाम है सभी विचारों की इकट्ठी गठरी का नाम मैं ये तीन चीजें हट जाती हैं जैसे ही विचार हटता इसलिए मेरा सर्वाधिक जोर ध्यान पर है ध्यान का इतना ही अर्थ होता है, तुम धीरे - धीरे निर्विचार में रमने लगो बैठे हैं, कुछ सोच नहीं रहे चल रहे हैं और कुछ सोच नहीं रहे सोच ठहरा हुआ है, इस ठहरेपन में ही तुम अपने में डुबकी लगाओगे, इस ठहरेपन में ही स्फुरणा होगी, समाधि जगेगी....
osho
अष्‍टावक्र महागीता (भाग–6) प्रवचन–77

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