रविवार, 2 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/१९-२१)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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यहु मन कागद की गुड़ी, उड़ी चढ़ी आकास । 
दादू भीगे प्रेम जल, तब आइ रहे हम पास ॥ १९ ॥ 
यह मन - पतँग आत्म रूप उड़ाने वाले की सत्ता से वासना - वायु द्वारा उड़कर विषयाकाश में चढ़ गया है किन्तु भाग्यवश सत्संग बादल से भगवत् प्रेम - जल की वृष्टि द्वारा भीग जाय=भक्ति प्राप्त हो जाय तो पुन: हमारे आत्म स्वरूप ब्रह्म के पास ही आकर स्थिरता से ब्रह्म - परायण होकर ही रहेगा । 
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दादू खीला गार का, निश्चल थिर न रहाइ । 
दादू पग नहिं साच के, भरमै दह दिशि जाइ ॥ २० ॥ 
२० में कहते हैं - साँसारिक विषयों में स्थित मन स्थिर नहीं होता - जैसे कीचड़ में कीला रोपने पर भी निश्चल नहीं रह सकता, वैसे ही मन सत्य स्वरूप भगवत् चरणों का आश्रय लिये बिना विषय - वासना से नाना योनियों में जाकर दश दिशा रूप सँसार में भ्रमण करता रहता है, स्थिर नहीं हो सकता ।
तब सुख आनन्द आतमा, जे मन थिर मेरा होइ । 
दादू निश्चल राम सौं, जे कर जाने कोइ ॥ २१ ॥ 
२१ - २२ में मन स्थिरता का लाभ बता रहे हैं - जो कोई राम से सम्बन्ध करा करके मन को निश्चल करना जानता हो, उस महानुभाव की कृपा से मेरा मन राम के स्वरूप में स्थिर हो जाय, तब ही आत्मानन्द रूप परमसुख मुझे प्राप्त हो सकता है ।
(क्रमशः)

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