सोमवार, 10 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९६ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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दादूवाणी में भी ऐसा ही माना है - 
“निरंजन निराकार है, ओंकार आकार । 
दादू सब रंग रूप सब, सब विधि विस्तार ॥ 
आदि शब्द ओंकार है, बोले सब घट मांहिं । 
दादू माया विस्तरी, परम तत्त्व यहु नाहिं ॥ 
उक्त प्रकार से शब्द ब्रह्म वादी वैयाकरणों के मूल सिद्धान्तों का जिनके द्वारा पाणिनि शास्त्र दर्शन कोटि में आता है, उनका दादूवाणी में भी भली भांति वर्णन मिलता है । 
*= एक साखी में सर्व दर्शन समन्वय =*
उच्च कोटि के विद्वान तो दादूवाणी की एक - एक साखी से भी सर्व दर्शन समन्वय करते की क्षमता रखते हैं । यह कथन मात्र ही नहीं है अपितु यथार्थ है । महा विद्वान् आचार्य स्वामी सुरजनदासजी ने “दादू - वाणी दर्शन”(दादू चतुशताब्दी, निबन्ध माला, द्वितीय पुष्प) में किया है । जिस साखी पर किया है वह साखी और उनका समन्वय संक्षेप से यहां दिया जा रहा है - 
“तीन शून्य आकार की, चौथी निर्गुण नाम । 
सहज शून्य में रम रह्या, जहां तहां सब ठाम ॥ 
उक्त साखी में शून्य नाम अवस्था का है । साखी का साधारण अर्थ यह है - साकार पदार्थ तीन प्रकार के हैं और चतुर्थ तत्त्व निराकार है और सभी आकारों में अनुस्यूत है, सर्व व्यापक है किन्तु यह एक अनुगम वाक्य है । अनुगम वाक्य उसे कहते हैं, जिसमें अनेक मतों के विषयों का अनुगम अर्थात् समन्वय हो सकता हो । ऐसे अनुगम मंत्र वेद में भी मिलते हैं । 
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यहां प्रथम ओंकार को ही देखिये - ओंकार ऐसा शब्द है जो पर और अपर उभय प्रकार के ब्रह्म को बताता है । सगुण ब्रह्म का वाचक है और निर्गुण ब्रह्म का लक्षक है । ओंकार निरुक्त और अनिरुक्त भेद से दो प्रकार का है । निरुक्त समात्र है और अनिरुक्त अमात्र है । निरुक्त के मात्रा भेद से तीन भेद हैं । इस ब्रह्म के वाचक ओंकार में तीन मात्रायें हैं - अकार, उकार, मकार । इससे वाचक रूप ओंकार तीन मात्राओं में विभक्त है । माण्डूक्य में लिखा है - अकार, उकार, मकार तीन मात्रायें आकार स्वरूप ओंकार के तीन स्थान हैं । इन से परे अमात्र ओंकार है, वह निराकार, निर्गुण है । मात्राओं से उसका परिच्छेद नहीं हो सकता है । अतः यह अमात्र कहा जाता है । इसी चतुर्थ अमात्र का वर्णन करते हुये, 
दुर्गा - सप्तशती लिखती है - 
अर्ध मात्रास्थिता नित्या यsनुच्चार्या विशेषतः ।” 
(क्रमशः)

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