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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९७ =*
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*= मसकीनदासजी को उपदेश =*
श्री दादूजी महाराज के पधारने का संकेत जब मसकीनदासजी को भी ज्ञात हुआ तब वे भी आकर चरणों में मस्तक रखकर नेत्रों से अश्रु बहाने लगे । तब उनके हृदय की बात को जानकार दादूजी महाराज ने कहा - तुम को क्या चिन्ता है ? तुम्हारे बड़े भ्राता तथा गुरु भाई गरीबदास हैं । तुन्हें कष्ट होने की बात ही क्या है ? फिर तुम भी ज्ञानवान हो, शरीरों के संयोग - वियोग तो अनादि काल से चले आ रहे हैं । ये तो इस प्रकार ही होते रहेंगे । आत्मा में तो कुछ भी नहीं है । आत्म विचार के द्वारा शांत रहो ।
दादूजी के उक्त वचन सुनते ही मसकीनदासजी के हृदय में पूर्व में अभ्यास किये हुये ज्ञान का प्रकाश प्रकट हो गया फिर तो उनका मुख - मंडल प्रसन्न भासने लगा । अन्य शिष्य संत भी जो व्यथित हो रहे थे वे भी दादूजी महाराज के मुख - कमल से उक्त उपदेश सुनकर प्रसन्नता पूर्वक आत्म - चिन्तन करने लगे ।
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*= पुनः गरीबदासजी का प्रश्न =*
फिर गरीबदासजी ने अवकाश देखकर हाथ जोड़े हुये प्रश्न किया स्वामिन् ! आपको तो आगे की भी सब बातैं करामलक के समान भासती हैं । अतः मैं आपसे पूछता हूं - आप की शिष्य परंपरा में जिस शिरोमणि निर्गुण ब्रह्म भक्ति का आपने उपदेश किया है, उसका पूर्ण रूप से निर्वाह करने वाला कोई संत आगे होगा क्या ?
गरीबदासजी के उक्त प्रश्न को सुनकर दादूजी महाराज ने कहा - अब से सौ वर्ष के लगभग एक संत इसी स्थान पर होंगे । उनमें निर्गुण ब्रह्म भक्ति पूर्ण रूप से होगी और वे मेरे समान ही होंगे । गरीबदासजी ने फिर पूछा - उनके पश्चात् भी फिर कोई उच्च कोटि का संत होगा ? दादूजी महाराज ने कहा - उनके पीछे इसी स्थान पर लगभग ८० वर्ष बाद एक संत और होंगे ।
गरीबदासजी ने पूछा - फिर ? दादूजी महाराज ने कहा - फिर भी जो मेरी वाणी के अनुसार साधन करेंगे तो होते ही रहेंगे । संत तो साधन करने पर होता है । अतः जब तक वाणी का प्रचार रहेगा तब तक उसके अनुसार साधन करने वाले साधक संतत्त्व को प्राप्त होते ही रहैंगे । उक्त भविष्य वाणी के अनुसार पहले संत *जैत साहिबजी* और दूसरे *निर्भयरामजी* दोनों ही ठीक समय पर तथा नारायणा धाम दादूजी महाराज की गद्दी पर विराजने वाले दादूपंथ के आचार्य और महान् संत हुये हैं । यह प्रसिद्ध ही है ।
गरीबदासजी ने पुनः पुछा - स्वामिन् ! फिर यह आपका चलाया हुआ अद्भुत भागवद् धर्म स्थायी रहेगा या नहीं ? तब दादूजी महाराज ने कहा - जो अपने इष्ट में अड़िग रहैंगे उनकी सहायता निरंजन राम अवश्य करैंगे । यदि महाप्रलय भी हो जायगी तो भी हमारी निर्गुण ब्रह्म भक्ति नष्ट नहीं, होगी ।
“दादू जैसा अविगत राम है, तैसी भक्ति लेख ।
इन दोनों की मित नहीं, सहस मुखा कह शेष ॥”
गरीबदासजी ने पूछा - भगवन् ! इस रहस्य को मैं नहीं समझ सका हूं, यह महाप्रलय में भी अखंड कैसे रह सकेगी ? दादूजी ने कहा - निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का आदि स्त्रोत्र वेद है । वेद के उपनिषद् भाग में निर्गुण ब्रह्म भक्ति अवस्थित है और वेद महाप्रलय में नष्ट नहीं होते हैं, संस्कार रूप से माया में बने रहते हैं । पुनः सृष्टि होती है । तब ऋषियों के हृदय से प्रकट होकर फैल जाते हैं । वाणी भी वेद रूप ही है । कारण, उसमें भी वेद में कथित निर्गुण ब्रह्म भक्ति का ही अपने अनुभव के अनुसार कथन हुआ है । उक्त उत्तर सुनकर गरीबदासजी अति प्रसन्न हुये ।
(क्रमशः)
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