शनिवार, 15 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/११-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*नथुवा रच्यौ सुगन्ध सौं, रसनूं रस बस होइ ।*
*चरनूं सपरश मिलि गयौ, सुधी बुधि रही न कोइ ॥११॥*
तीसरा नथुवा गंध को ही अपना सब कुछ मानकर उसी के पीछे दौड़ने की आदत पकड़ बैठा । चौथा रसनूँ जिह्वा-स्वाद के वश में होकर अपने को गँवा बैठा । सबसे छोटा चरमूँ भी पीछे क्यों रहता ! उसने भी विवेकभ्रष्ट होकर स्पर्श के चक्कर में बहकर अपनी व अपने बाप-दादों की कुलमर्यादा डुबो दी ॥११॥
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*सबै ठगनि कै बसि परै, जित खैंचहिं तित जांहिं ।*
*तिन कै संग लगे फिरहिं, तृप्ति सु मानैं नांहिं ॥१२॥*
ये पाँचों ही लड़के रूप आदि ठगों के अधीन हो गये । वे ठग उन्हें जहाँ ले जाते, जिधर ले जाते, उधर ही दौड़ पड़ते । उन ठगों के साथ घूमने-फिरने में ही सबसे अधिक सुख-सन्तोष मानते और दिन-रात उनके साथ रहने पर भी नहीं अघाते थे ॥१२॥
(क्रमशः)

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