शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९६ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*= विन्दु ९६ =*
.
*= श्री दादूवाणी भाषा विचार =* 
श्री दादूवाणी में अनेक भाषाओं के शब्द प्राप्त होते हैं । इनका संक्षिप्त परिचय - १. संस्कृत २. तद्भव रूप(संस्कृत का अप-- भ्रंस हिन्दी) ३. हिन्दी ब्रज भाषा ४. राजस्थानी हिन्दी - जैपुरी, मारवाड़ी, मेवाड़ी । ५. गुजराती ६. मराठी ७. पंजाबी ८. सिन्धी ९. सराई(सिन्ध और पंजाब के बीच की) १०. फारसी ११. उर्दू १२. मिश्रित भाषा(दो भाषायें मिली हुई भी अनेक पदों में मिलती है । उक्त १२ भाषायें दादूवाणी में मिलती हैं । दादूवाणी की रचना विक्रम की १७वीं शताब्दी की है । अतः उस समय की प्रचलित भाषा में तथा दादूजी महाराज की समाधि भाषा में है । दादूवाणी में अधिक प्रयोग - ब्रज, मारवाड़ी और जैपुरी का हुआ है । कारण ? वाणी रचना के समय दादूजी महाराज उक्त भाषाओं वाले प्रदेशों में ही अधिक रहे थे । कुछ साखी और पद तो एक ही भाषा में रचे गये हैं और कोई - कोई मिश्रित भाषा में भी रचे गये हैं । 
.
दादूजी महाराज की मातृ भाषा गुजराती थी इससे गुजराती शब्द कहीं कहीं हिन्दी तथा मारवाड़ी साखी और पदों में भी आ गये हैं । गुजराती भाषा के पद आरंभावस्था के होने से प्रायः प्रार्थना, विरह, प्रेमाभक्ति सम्बन्धी ही हैं । दादू वाणी में आई हुई सभी भाषाओं का समझना सर्व साधारण के लिये सहज नहीं था । 
.
दादूजी महाराज के चरित्र ग्रन्थों में उनकी शिक्षा का वर्णन मिलता है । वे आठ वर्ष की अवस्था तक पढ़ते रहे थे । महापुरुषों को अल्प काल की पढ़ाई से ही बहुत ज्ञान हो जाता है । यह तो इतिहास में प्रसिद्ध ही है । श्री शंकराचार्य सात ही वर्ष की अवस्था में महान् विद्वान् हो गये थे । इस बात को भी सभी विज्ञपुरुष जानते ही हैं । 
.
अतः दादूजी महाराज ने भी आठ वर्ष की अवस्था में ही जो उनको पढ़ना था, पढ़ लिया था । चरित्र ग्रंथों में पढ़ाने वाले पंडित का नाम भी आता ही है, जो पूर्व प्रसंग में लिखा जा चुका है । उनकी रचना यह सिद्ध करती है कि वे अवश्य शिक्षित थे । तब ही जगजीवनजी जैसे महा पंडित उनके शिष्य हुये थे ।
*= इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ९६ समाप्तः । =*
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें