मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

*सेव लही प्रभु गोविन्द देव हि*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*संगि सदा हेत हरि लागो, अंगि और नहिं आवे ।*
*दादू दीन दयाल दमोदर, सार सुधा रस भावे ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ४१०)*
==========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*९ काशीश्वर अवधूतजी की पद्य टीका*
*इन्दव-*
*काशिश्वरै अवधूत वरै करि,*
*प्रीति निलाचल मांहिं बसे हैं ।*
*कृष्ण जु चैतनि आयसु पाय रु,*
*आय वृन्दावन देखि लसे१ हैं ॥*
*सेव लही प्रभु गोविन्द देव हि,*
*चाहत है मुख जीवन से हैं ।*
*नित्य लडावत प्रेम बुडावत,*
*पारहि पावत कौन असे हैं ॥ ३७४ ॥*
.
काशीश्वर अवधूतजी प्रथम अवधूत वृत्ति से रहते थे । विचरते हुए नीला चल श्रीजगन्नाथ क्षेत्र में आये तब, वहाँ रहना आपको बहुत ही अच्छा लगा अतः अति उत्तम प्रीति पूर्वक वहाँ ही बस गये । पीछे अपने गुरु श्रीकृष्ण चैतन्यजी आज्ञा से वृन्दावन आये और वृन्दावन को देख कर आपके हृदय की अभिलाषा पूर्ण हो गई और आप वहाँ ही विराज१ गये तथा प्रभु गोविन्द देवजी की सेवा-पूजा का अधिकार भी आपको प्राप्त हो गया । जीव के जीवन के आधार के समान भगवान् के मुख का दर्शन निरन्तर चाहते थे तथा नित्य ही प्रभु को लडाते थे और प्रभु-प्रेम समुद्र में डूबे रहते थे । उनके उस प्रभुप्रेम का वर्णन करके पार पा सके ऐसा कवि कौन है ? अर्थात् नहीं है ।
.
१०. द्योराज नीरजी भी जीवों को संसार सरिता से पार करने वाले भक्त हुये हैं ।
.
११. पदार्थजी के घर एक साधु भेषधारी ठग एक वैश्य की स्त्री के भूषण ले कर भाग आया था । उसके पीछे राजपुरुष लगे थे । वह आपके घर में घुसकर बोला- मेरे पीछे बिना दोष ही राजपुरुष लगे हैं, आपने उसको बचाने के लिये अपनी स्त्री के पास सुला दिया था । फिर सच्ची बात कहने पर भूषण वैश्य के घर भेज दिया । और यह ठग संत बन गया था ।
.
१२. ऊदाजी वैश्य थे, संतसेवा में लगे रहते थे । एक संत ने इनकी परीक्षा के लिये इनकी पत्नी को मांग लिया था । आपने वस्त्र भूषणों से सजाकर दे दिया किन्तु महात्मा ने अपनी सिद्धि से रात को पति के पास भेज दिया था ।
.
१३. सोभूजी की कथा आगे २८१ के मनहर में आयेगी ।
.
१४. पद्मजी - प्राणियों को संसार सरिता से पार करने वाले हरिभक्त हुये हैं ।
.
१५. कृष्ण किंकरजी कुंडाग्राम में रहते थे । इनका नाम ७०४ के छप्पय में भी आयेगा । आप भी जीवों को संसार-नदी से पार करने वाले भक्त हुये हैं ।
.
१६. विमलानन्दजी ने एक राजा तथा उसके कर्मचारी जो एक वैश्य की रूपवती पुत्री को हरने पर उतारू थे उन सबको अंधा बना दिया था । राजा ने प्रार्थना की तब कहा- तुम्हारी आँखें कामुक वृत्ति के कारण गई हैं । कामुक वृत्ति हटते ही खुल जायेंगी । वैसा ही हुआ ।
.
१७. रामदासजी - जीवों को भव-सरिता से पार करने वाले राम भक्त हो गये हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें