रविवार, 28 जुलाई 2024

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*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
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*दादू जिस रस को मुनिवर मरैं,*
*सुर नर करैं कलाप ।*
*सो रस सहजैं पाइये, साधु संगति आप ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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#महावीर गुजर रहे हैं एक रास्ते से। लोग कहते हैं, वहां से मत जाएं, वहां एक भयंकर सर्प है। वहां से कोई जाता नहीं। राह निर्जन हो गई है। सर्प बहुत भयंकर है और हमले करता है। दूर से फुफकार मार देता है, तो आदमी मर जाता है। तो महावीर कहते हैं, जब वहां से कोई भी नहीं जाता, तो सर्प के भोजन का क्या होगा ?
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अगर आपसे किसी ने कहा होता कि उस रास्ते पर सर्प है, सर्प को छोड़ो, चूहा है, उधर से मत जाएं, चूहा बड़ा खतरनाक है, तो आपको जो पहला खयाल आता वह अपना आता कि जाना कि नहीं। महावीर को पहला खयाल सर्प का आया कि भूखा तो नहीं होगा। यह अस्मिता गल गई, गली जा रही है, यहां मैं का खयाल ही नहीं आता; उसका खयाल आ रहा है कि फिर तो जाना ही पड़ेगा। 
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महावीर ने कहा, भला किया कि तुमने बता दिया। जाना ही पड़ेगा। अगर मैं न जाऊंगा, तो फिर कौन जाएगा ? तो महावीर उस सर्प को खोजते हुए पहुंचते हैं। मीठी कथा है कि सर्प ने उनके पैर में काट लिया, तो कथा है कि खून नहीं निकला, दूध निकला। दूध निकल सकता नहीं पैर से। लेकिन यह काव्य-प्रतीक है ! 
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दूध प्रेम का प्रतीक है, मां का प्रतीक है। सिर्फ मां के पास संभावना है कि खून दूध हो जाए। और मनसविद कहते हैं कि अगर मां प्रेम से बिलकुल क्षीण हो जाए, तो उसके भीतर भी खून दूध में परिवर्तन नहीं होगा। वह परिवर्तन भी इसलिए संभव है कि उसका अति प्रेम ही उसके अपने खून को अपने प्रेमी के लिए, अपने बच्चे के लिए दूध बनाता है, भोजन बना देता है।

यह सिर्फ प्रतीक है कि महावीर के पैर में काटा सांप ने, तो वह दूध हो गया। इस प्रतीक को पूरा तभी समझ सकेंगे, जब समझें कि महावीर ने कहा कि सांप भूखा होगा। और मैं नहीं जाऊंगा, तो कौन जाएगा ? 
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यह ठीक मां जैसी पीड़ा है, जैसे बच्चा भूखा हो। इसलिए यह प्रतीक है कि उनके पैर से दूध बहा। दूध तो बहेगा नहीं; लेकिन महावीर के पैर से खून भी बहा हो, तो वह ठीक वैसे ही दूध जैसा बहा जैसे मां का प्रेम बहता हो भूखे बच्चे के प्रति। यह अस्मिता का विसर्जन है, मैं का भाव नहीं है।
ओशो : ताओ उपनिषद(प्रवचन--34)

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