शनिवार, 27 जुलाई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४४२

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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४४२)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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४४२.
*अविचल आरती देव तुम्हारी,*
*जुग जुग जीवन राम हमारी ॥टेक॥*
*मरण मीच जम काल न लागे,*
*आवागमन सकल भ्रम भागे ॥१॥*
*जोनी जीव जनम नहिं आवे,*
*निर्भय नाँहीं व अमर पद पावे ॥२॥*
*कलिविष कसमल बँधन कापे,*
*पार पहुँचे थिर कर थापे ॥३॥*
*अनेक उधारे तैं जन तारे,*
*दादू आरती नरक निवारे ॥४॥*
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हे निरंजन देव ! आपकी अविचल आरती भक्तों के जीवन का सर्वस्य है । वे प्रतियुग में आपकी आराधना के लिये ही जीते रहते हैं । आपके भक्त जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़ते । काल से भी नहीं डरते हैं । अन्य लोकों में भी नहीं जाते, किन्तु यहां ही मुक्त हो जाते हैं ।
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उनका भ्रमजन्य भेद भी मिट जाता है, तथा चौरासी लाख योनियों में नहीं पड़ते । न बार बार संसार में आते हैं । आपके नाम का निर्भय होकर जप करते हुए अमर बन जाते हैं, अर्थात् स्व-स्वरूप ब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं । आपकी आरती करने वाले भक्त के नाना प्रकार के विकार और पाप-बन्धन कट जाते हैं ।
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साधक आपकी आरती करके संसार से पार हो जाता है । ऐसे फल को सुन कर ही साधक आपकी आरती के लिये उद्यत होता है । आपकी आरती करते हुए अनेक भक्त संसार से पार उतर गये । आपकी आरती-स्तुति प्राणियों को नरक में जाने से बचाती है ।
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गीता में कहा है कि –
मेरे में चित्त लगाने वाले मेरे प्रसाद से अनेक संकटों को पार कर जाते हैं । भगवान् की प्रसन्नता होने पर भक्त के सब दुःखों का नाश हो जाता है ।
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गरुड़पुराण में कहा है कि –
जिनके हृदय में मंगलमय भगवान् विराजते हैं उनके लिये लाभ और जय की प्राप्ति निश्चित ही है । उनकी पराजय किसी भी प्रकार से नहीं हो सकती है ।
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निर्गुणमानसी पूजा में कहा है की –
विविध ब्रह्म-दृष्टि रूप मालाओं से अलंकृत है, जो पूर्ण आनन्दरूप दृष्टि है, वह ही उस ब्रह्म के लिये पुष्पांजलि है, ऐसा समझो । मुझ ईश्वर में अनन्त ब्रह्माण्ड भ्रमण कर रहे हैं, ऐसा कूटस्थ अचल रूप मैं हूं, ऐसा ध्यान ही प्रदक्षिणा है ।
(क्रमशः)

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