परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 12 अगस्त 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४८/१५०*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४८/१५०*
.
ए ऊँकारि बिचारि हरि, अरथ भेद सब पाइ ।
कहि जगजीवन रांम रटि, रांम हि मांहि समाइ ॥१४८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि एक ओम कार का विचार करें । उसमें सब अर्थ व भेद मिल जायेंगे । संत कहते हैं कि राम रटने से राम में ही समाते हैं ।
.
अण अदेख५ देख्या कहै, रांम भगति भै भीत ।
कहि जगजीवन ए हरि सौदा, सिर के साटै६ सीत ॥१४९॥
(५. अण अदेख=न देखा हुआ) (६. साटै=बदले में)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बिना जाने ही जाना हुआ कहते हैं, व राम भक्ति से कतराते रहते हैं । संत कहते हैं कि भक्ति तो समर्पण भाव से है उसमे जान भी लग जाये तो विचारें की मुफ्त में मिली है ।
.
बेदन मांहै बिराजै, मंदिर करै प्रगास ।
निस सोवै दिन क्रित करै, सु कहि जगजीवनदास ॥१५०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु ज्ञान(वेद) में भी हे पीड़ा में भी है । जिससे मन मन्दिर प्रकाशित होता है । जो रात में प्रभु भाव से शयन व दिन में प्रभु भाव से संसारिक कृत्य करता है ।
इति गूढ अर्थ कौ अंग संपूर्ण ॥४३॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें