परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

*गिरीश तथा मास्टर*

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*यंत्र बजाया साज कर, कारीगर करतार ।*
*पंचों का रस नाद है, दादू बोलनहार ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १३७.ईश्वर-लाभ के उपाय*
*(१)गिरीश तथा मास्टर*
काशीपुर के बगीचे के पूर्व की ओर तालाब है, जिसमें पक्का घाट बँधा हुआ है । उद्यान, पथ और तरु-लताएँ चाँदनी की उज्ज्वल छटा में खूब चमक रही हैं । तालाब के पश्चिम की ओर दुमँजले मकान में दीपक जल रहा है ।
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कमरे में श्रीरामकृष्ण छोटे तखत पर बैठे हुए हैं । दो-एक भक्त भी कमरे में चुपचाप बैठे हैं । कोई कोई इस कमरे से उस कमरे में आ-जा रहे हैं । घाट से नीचे के कमरों का उजाला भी दिखायी पड़ रहा है । एक कमरे में भक्तगण रहते हैं । यह कमरा दक्षिण की ओर है ।
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मकान के बीच से जो प्रकाश आ रहा है, वह श्रीमाताजी के कमरे का है । श्रीमाताजी श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए आयी हुई हैं । तीसरा प्रकाश भोजनगृह से आ रहा है । यह कमरा मकान के उत्तर की ओर है । उद्यान के भीतर से पूर्व की ओर घाट तक एक रास्ता गया है । रास्ते के दोनों ओर, विशेषकर, दक्षिण की ओर फूलों के बहुत से पेड़ हैं ।
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तालाब के घाट पर गिरीश, मास्टर, लाटू तथा दो-एक भक्त और बैठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण के सम्बन्ध में बातचीत हो रही है । आज शुक्रवार है, १६ अप्रैल, १८८६, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी । कुछ देर बार गिरीश और मास्टर उस रास्ते पर टहल रहे हैं और बीच बीच में वार्तालाप कर रहे हैं ।
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मास्टर - कैसी सुन्दर चाँदनी है ! कितने अनन्त काल से प्रकृति के ये नियम चले आ रहे हैं !
गिरीश - तुम्हें कैसे मालूम हुआ ?
मास्टर - प्रकृति के नियमों में परिवर्तन नहीं होता । विलायत के पण्डित टेलिस्कोप(Telescope) से नये नये नक्षत्र देख रहे हैं । उन्होंने देखा है, चन्द्रलोक में बड़े बड़े पहाड़ हैं ।
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गिरीश - यह कहना कठिन है, उनकी बातों पर विश्वास नहीं होता ।
मास्टर - क्यों ? टेलिस्कोप से तो सब बिलकुल ठीक ठीक दीख पड़ता है ।
गिरीश - पर तुम कैसे कह सकते हो कि पहाड़ आदि सब ठीक ठीक ही देखे गये हैं । मान लो, पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच में कुछ और चीजे हों, तो उनमें से प्रकाश आने पर सम्भव है ऐसा दिखता हो ।
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किशोर भक्त-मण्डली सदा ही बगीचे में रहती है, श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए, - नरेन्द्र, राखाल, निरंजन, शरद, शशि, बाबूराम, काली, योगिन, लाटू आदि । जो संसारी भक्त हैं, उनमें से कोई कोई रोज आते हैं और रात में भी कभी कभी रह जाते हैं । उनमें से कोई कभी कभी आया करते हैं । आज नरेन्द्र, काली और तारक दक्षिणेश्वर कालीमन्दिर के बगीचे में गये हुए हैं । नरेन्द्र वहाँ पंचवटी के नीचे बैठकर तपस्या और साधना करेंगे । इसीलिए दो-एक गुरुभाइयों को भी साथ लेते गये हैं ।
(क्रमशः)

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