परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

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*सब ही मृतक देखिये, किहिं विधि जीवैं जीव ।*
*साधु सुधारस आणि करि, दादू बरसे पीव ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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#बुद्ध के जीवन में उल्लेख है। शायद काल्पनिक ही कथा होगी, लेकिन बहुत मधुर है। बुद्ध का निर्वाण हुआ, वे मोक्ष के द्वार पर पहुंच गए, द्वारपाल ने द्वार खोल दिए, लेकिन बुद्ध पीठ करके द्वार की तरफ खड़े हो गए। द्वारपाल ने पूछा, आप पीठ करते हैं मोक्ष की तरफ ?
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बुद्ध ने कहा, मेरे पीछे बहुत लोग हैं, जब तक वे भी मोक्ष में प्रविष्ट नहीं हो जाते, तब तक मैं अकेला मोक्ष में प्रविष्ट हो जाऊं ? इतना कठोर, इतना क्रूर, इतना हिंसक मैं नहीं हूं। मैं रुकूंगा, प्रतीक्षा करूंगा, बहुत लोग हैं। मेरा शांत मन तो यही कहता है कि मैं अंतिम आदमी ही होऊंगा मोक्ष में प्रवेश करने वाला, पहले सारे लोग प्रविष्ट हो जाएं।
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बड़ी मीठी कथा है। वह कथा कहती है, बुद्ध अब भी मोक्ष के द्वार पर ही रुके हैं, ताकि सारे लोग मोक्ष में प्रविष्ट हो जाएं। वे अंतिम ही प्रविष्ट होना चाहते हैं। जिस हृदय में ऐसा भाव उठा हो, उसे मोक्ष उपलब्ध ही हो गया, उसे किसी मोक्ष में प्रविष्ट होने की कोई जरूरत नहीं है। उसके लिए सब मोक्ष फीके हो गए, वह मोक्ष में पहुंच ही गया, जिसके हृदय में ऐसा करुणा का भाव उठा हो। शांत केवल वे ही हो पाते हैं, जिनके जीवन में चारों तरफ शांति पहुंचाने की प्रबल प्रेरणा काम करने लगती है।
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यह भी मेरे खयाल में आता है कि जो मित्र इस दिशा में उत्सुक हुए हैं वे केवल अपने में ही उत्सुक न हों, और सबमें भी उत्सुक हो जाएं। उनकी यह उत्सुकता दूसरों के लिए हितकर होगी ही; न भी हुई तो भी उनके स्वयं के लिए बहुत अर्थपूर्ण होगी, बहुत-बहुत गहरे शांति में और आनंद में उन्हें प्रविष्ट करने में सहयोगी होगी। क्योंकि अशांति का एक कारण है: स्वयं में केंद्रित हो जाना। और जो इस केंद्र को बिखेर देता है वह शांत होने की दिशा में गतिशील हो जाता है।
ओशो; अनन्त की पुकार


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