शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

*ईश्वर-कोटि तथा जीव-कोटि*

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*कर्मै कर्म काटै नहीं, कर्मै कर्म न जाइ ।*
*कर्मै कर्म छूटै नहीं, कर्मै कर्म बँधाइ ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)ईश्वर-कोटि तथा जीव-कोटि*
दूसरे दिन मंगलवार है, रामनवमी, १३ अप्रैल, १८८६ । सुबह का समय है; श्रीरामकृष्ण ऊपरवाले कमरे में छोटे तखत पर बैठे हुए हैं । दिन के आठ-नौ बजे का समय हुआ होगा । मणि रात को यहीं थे । सबेरे गंगा-स्नान करके आये और श्रीरामकृष्ण को भूमिष्ठ हो प्रणाम किया ।
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राम दत्त भी आज सुबह आ गये हैं, उन्होंने भी श्रीरामकृष्ण को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया । राम फूलों की एक माला ले आये हैं, श्रीरामकृष्ण की सेवा में उसका समर्पण कर दिया । अधिकांश भक्त नीचे के कमरे में बैठे हुए हैं, श्रीरामकृष्ण के कमरे में दो ही एक हैं । राम श्रीरामकृष्णदेव से वार्तालाप कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (राम से) - किस तरह देख रहे हो ?"
राम - आप में सब कुछ है । अब आपके रोग की चर्चा उठने ही वाली है ।
श्रीरामकृष्ण जरा मुस्कराये । फिर राम ही से उन्होंने संकेत करके पूछा - "क्या रोग की बात भी उठेगी ?"
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श्रीरामकृष्ण के जो जूते हैं, वे अब पैरों में गड़ने लगे हैं । डाक्टर राजेन्द्र दत्त ने पैर की नाप माँगी है - आर्डर देकर वे जूते बनवा देना चाहते हैं । पैर की नाप ली गयी । (इस समय बेलुड़ मठ में इन्हीं पादुकाओं की पूजा हो रही है।) श्रीरामकृष्ण मणि से संकेत से पूछ रहे हैं कि कूँड़ी कहाँ है ।
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मणि कलकत्ते से कूँड़ी ले आने के लिए उसी समय उठकर खड़े हो गये । श्रीरामकृष्ण ने उस समय उन्हें रोका ।
मणि - जी नहीं, ये लोग जा रहे हैं, इनके साथ मैं भी चला जाऊँगा ।
मणि ने जोड़ासाखों की एक दूकान से एक सफेद कूँड़ी खरीदी । दोपहर के समय वे काशीपुर लौट आये और श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके कूँड़ी उनके सामने रखी ।
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श्रीरामकृष्ण सफेद कूँड़ी हाथ में लेकर देख रहे हैं । डाक्टर राजेन्द्र दत्त, हाथ में गीता लिए हुए डाक्टर श्रीनाथ, श्रीयुत राखाल हालदार तथा अन्य भी कई सज्जन आये हैं । कमरे में राखाल, शशि आदि कई भक्त हैं । डाक्टरों ने श्रीरामकृष्ण से पीड़ा के सम्बन्ध की कुल बातें सुनीं ।
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डाक्टर श्रीनाथ - (मित्रों का) - सब लोग प्रकृति के अधीन हैं । कर्मफल से किसी का छुटकारा नहीं है । प्रारब्ध ।
श्रीरामकृष्ण - क्यों, उनका नाम लेने पर, उनकी चिन्ता करने पर, उनकी शरण में जाने पर, -
श्रीनाथ - जी, प्रारब्ध कहाँ जायेगा ? - पिछले जन्मों के कर्म ?
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श्रीरामकृष्ण - कुछ कर्म भोग होता तो है, परन्तु उनके नाम के गुण से बहुतसा कर्मपाश कट जाता है । एक मनुष्य को पिछले जन्म के कर्मों के लिए सात बार अन्धा होना पड़ता, परन्तु उसने गंगास्नान किया । गंगास्नान से मुक्ति होती है । इसलिए उस जन्म के लिए तो वह जैसे का वैसा ही अन्धा बना रहा, परन्तु अगले छः जन्मों के लिए न तो उसे जन्म लेना पड़ा और न अन्धा होना पड़ा ।
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श्रीनाथ - जी, शास्त्रों में तो है कि कर्मफल से किसी का छुटकारा नहीं हो सकता ।
डाक्टर श्रीनाथ तर्क करने के लिए तुल गये ।
श्रीरामकृष्ण - (मणि से) - कहो न जरा, ईश्वर-कोटि और जीव-कोटि में बड़ा अन्तर है । ईश्वर-कोटि कभी पाप नहीं कर सकते - कहो ।
मणि चुप हैं । वे राखाल से कह रहे हैं - तुम कहो ।
कुछ देर बाद डाक्टर चले गये ।
(क्रमशः)

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