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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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आचार्य कृष्णदेव जी के भजन में विध्न ~
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आचार्य कृष्णदेव जी महाराज आनन्द से रात दिन ब्रह्म चिन्तन करते हुये समाज का संचालन करते थे । समाज भी आपकी जीवन चर्या से अति संतुष्ट था । समाज के संत आपका अनुकरण करते हुये, अपना सब समय ब्रह्म - भजन में ही व्यतीत करते थे । किन्तु आपके गादी पर बैठने के पश्चात् कुछ ही समय में एक विध्न आ गया ।
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आमेर नरेश सवाई जयसिंह दूसरे ने वि.सं. १७८४ में जयपुर नगर आरंभ किया था । उस समय से अधिकतर उसकी व्यवस्था के लिये वे वहां ही रहते थे । किसी ने सवाई जयसिंह को गलता के उस समय के महन्त का नारी प्रसंग रुप अनुचित व्यवहार का परिचय दिया । राजा ने कहा हम अनुचित व्यवहार देखेंगे तो उस पर उचित विचार किया जायगा। फिर राजा के मन में गलता के महन्त का व्यवहार देखने का द्द़ढ संकल्प हो गया कि महन्त जी का व्यवहार वास्तव में अनुचित है या मिथ्या प्रचार है देखना चाहिये ।
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इसलिये एक दिन राजा महन्त जी को बिना सूचना दिये ही अकस्मात् गलता के मंदिर में जा पहुँचे । वहां महन्तजी को न देख कर पूछा - महन्तजी कहां हैं ? पुजारी ने कहा - ऊपर अपने कमरे में हैं । राजा उसी क्षण उठकर बिना सूचना दिये ही महन्तजी के कमरे में चले गये और वहां महन्तजी को नारी सुख लेते हुये अपने नेत्रों से देख लिया । फिर उसी क्षण नीचे आ गये और भगवान् को प्रणाम करके जयपुर आ गये ।
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राजा के चले जाने के पश्चात् महन्तजी के सेवकों तथा पुजारी ने राजा के आने की तथा ऊपर जाकर शीघ्र लौटने की सूचना महन्तजी को दे दी और महन्तजी के पूछने पर कि मेरे कमरे पर किस समय गये थे ? वह समय बता दिया । उससे महन्तजी मन में ही जान गये कि उस समय तो में अनुचित कार्य में रत्त था और राजा ने देखा होगा तब ही मेरे से बिना मिले शीघ्र लौट गये हैं । परन्तु अब तो जो हो गया सो हो गया । अब तो राजा के विचारों को जानने पर ज्ञात होगा कि वह क्या करेगा ।
(क्रमशः)

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