शनिवार, 20 सितंबर 2025

पूर्ण ब्रह्म अविनाशी गह्या है

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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आचार्य जैतरामजी के शिष्य ~
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जैतराम जी महाराज के कितने शिष्य थे, इसका पूरा पता तो मुझे नहीं लगा है किन्तु - १ कृष्णदेवजी मुख्य थे । वे ही गद्दी पर विराजे थे ।  जैतरामजी के स्नान की शिला अब तक पूजी जाती है । यह चैनरामजी की बारहदरी की पैडियों के पास अधर शिला छत्री के रुप में है । कहा भी है -
“भक्तों के संपर्क से, शिल भी पूजा पाय ।
जैतराम के स्नान की, पूजत सब शिरनाय ॥द्द.त.९॥’’
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आचार्य जैतरामजी की वाणी ~
आचार्य जैतराम जी महाराज की वाणी कितनी है, उसका पूरा पता तो मुझे प्राप्त नहीं हो सका है, किन्तु तुलसी टीलावतजी रचित ‘दादूविलास’(दादू जीवन चरित्र) में कुछ दादूजी के शिष्यों का परिचय दिया है । आचार्य जैतरामजी तक के आचार्यों का भी परिचय दिया है और उसी प्रसंग में जैतरामजी महाराज के १६ पद दिये हैं । उनमें उदाहरण रुप में एक पद यहां दिया जाता है, देखिये - 
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‘जोगिया एक जु अलख अभेवा,  
जाकी जन दादू लागे, 
मन वच दृढ कर सेवा ।टेक।
पूर्ण ब्रह्म अविनाशी गह्या है, 
सो त्रय लोक में रम सुरह्या ॥१॥
सो है परम ज्योति परकाशा, 
आवे न जाय होय नहिं नाशा ॥२॥
ताही से दादू लागा है, 
भ्रम रु भेद संशय भागा है ॥३॥ 
मुद्रा अगोचरि साधन करके, 
लखा निरंजन राया ॥४॥ 
जैतराम कह ऐसा दादू, 
जिहिं समर्थ चरणे आया ॥५॥’ 
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तुलसी टीलावत ने इस पद का प्रसंग भी दिया है कि - सिक्ख गुरु गोविन्दसिंहजी जब नारायणा दादूधाम पर आये थे तब उन्होंने जैतरामजी महाराज से कहा था कि - आप दादूजी के साधन का परिचय दीजिये । तब जैतरामजी महाराज ने उक्त पद सुनाकर दादूजी महाराज के निगुर्ण निरंजन ब्रह्म की उपासना रुप साधन का परिचय दिया था । इसको सुनकर सिक्ख गुरु गोविन्दसिंह जी ने भी माना था कि दादूजी की साधन पद्धति महान् थी ।  
इति श्री तृतीय अध्याय समाप्त : ३
(क्रमशः) 

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