बुधवार, 17 सितंबर 2025

आनन्द हुआ पंथ में

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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५ आचार्य जैतरामजी महाराज
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आचार्य जैतरामजी का पत्र देकर बिचूण के संतों ने बीच में पड करके आपस में मेल कराने का पूरा प्रयत्न किया था । इसी से उनकी संज्ञा बिचोलिया हो गई थी । अभी तक वे बिचोलिया ही कहलाते हैं । आचार्य जैतराम जी का पत्र पढकर और बिचोलियों के प्रयत्न करने पर सब आकर नारायणा दादूधाम में पुन: एक हो गये थे । 
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कहा भी है - 
दोय पंथ हुआ देख के, बोले जैत दयाल ।  
केवल हृदय राम जी, आय मिलो तत्काल ॥ 
सुन्दर जी प्रहलाद का, सब गुरु द्वारे आय । 
गुरु को भेंट चढाय के, तन मन शीश नमाय ॥
आनन्द हुआ पंथ में, मेटा सब ही साल ।
जै जै हुआ लोक में, मिलिया जैत दयाल ॥
(दौलतराम)
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नारायणा दादूधाम के पंचम आचार्य जैतराम जी महाराज दिव्य शक्तियों के केन्द्र थे । यह उनकी जीवनी से ही प्रकट होता है । उन्होंने दादू पंथ का बहुत अच्छी पद्धति से संचालन किया था और आगे सुचारु रुप से चलता रहे, इसके लिये सुन्दर मर्यादा का निर्माण किया था, जिसका निर्वाह आज तक समाज में हो रहा है । 
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दादूजी महाराज के सिद्धान्त के अनुसार आपने निर्गुण निरंजन निराकार परब्रह्म की भक्ति स्वयं की थी और लोक कल्याण के लिये उसका अधिक से अधिक प्रसार प्रचार किया था । आपके उपदेश गंभीर तत्त्व के संबन्धी होने पर भी सर्वोपयोगी होते थे । महान् शक्ति संपन्न होने पर भी आप में अभिमान का लेश भी नहीं था । 
(क्रमशः) 

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