शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

बालानन्द गडबड करेंगे

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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आचार्य चैनरामजी उच्च कोटि के संत थे, उन्होंने ध्यान धर कर देखा तो कोटवाल की बात उनको सत्य ही ज्ञात हुई । बालानन्दजी के विचार को वे अच्छी प्रकार जान गये । कोटवाल से कहा - यह बात अभी ग्राम में नहीं फैलनी चाहिये तथा बालानन्द जी के साधुओं के साथ रसोई आदि का सामान देने में कोई कमी नहीं रखना तथा ऐसी कोई बात भी नहीं करना जिससे उनको विक्षेप हो ।  
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फिर आचार्य जी ने अपने विश्‍वास पात्र व्यक्तियों को बुला कर जगमाल वंशज खंगारोत आदि क्षत्रियों को पत्र लिखकर उन अनेक व्यक्तियों को जगमालजी के वंशज सभी ठिकानों में उसी दिन भेज दिये । 
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पत्रों में लिखा था - “बालानन्दजी बारह हजार शस्त्र धारी साधुओं को लेकर नारायणा दादूधाम की परंपरा को नष्ट करने आया है । बल से माला तिलक और अपनी कंठी नारायणा दादूधाम के आचार्य को बाँधकर वैरागी बनायेगा । दादू द्वारा आप लोगों का बनाया हुआ है तथा आप लोगों का गुरुद्वारा है । नारायणासिंह जी से ही चला आ रहा है । इसकी परंपरा की रक्षा करना भी आप लोगों का मुख्य काम है । शीघ्र ही आकर रक्षा करो । देर करने से बालानन्द गडबड करेंगे । आप सब का हितैषी आचार्य चैनरामजी । 
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नारायणा दादूधाम दादूद्वारा उक्त पत्र अतिशीघ्रता से सब ठिकानों में पहुँच गये । पत्रों को पढ कर सभी जगमाल के वंशज और विशेषकर खंगारोतों में बिजली सी दौ़ड गई । वे क्षत्रिय वीर अपनी तलवारें उठा - २ कर प्रतिज्ञा करने लगे - हमारे रहते हुये बालानन्द दादू द्वारे की परंपरा को कैसे नष्ट कर सकता है । 
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उन्होंने अपने सभी ग्रामों में अतिशीघ्र सूचना भेज दी कि दादू द्वारे की रक्षा के लिये सशस्त्र यूथ बनाकर नारायणा चलना है और शीघ्र ही चलना है । यह बात नारायणा के आसपास के ग्रामों में भी फैल गई । सभी ग्रामों के लोग नारायणा दादूधाम की परंपरा के पक्ष में थे । इधर बालानन्दजी दूसरे दिन अपने कुछ साधुओं को लेकर आचार्य चैनराम जी के पास गये । 
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चैनरामजी ने अपने भंडारी आदि से उनका स्वागत सत्कार कराया । बालानन्दजी आचार्य जी से मिलकर उनके पास ही एक अन्य आसन पर बैठ गये । फिर आचार्य जी के सामने अपना प्रस्ताव रक्खा कि हम आपको वैरागी बनाने आये हैं । आप लोग निर्गुण निर्गुण पुकारते रहते हैं । किन्तु निर्गुण को किसने देखा है ? अत: निर्गुण को छोडकर हम से दीक्षा लो - माला, तिलक धारण करो और हमारी कंठी बाँधों । 
(क्रमशः) 

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