मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग २५/२८*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*६. उपदेश चितावनी कौ अंग २५/२८*
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सुन्दर पक्षी बृक्ष पर, लियौ बसेरा आनि । 
राति रहे दिन उठि गये, त्यौं कुटंब सब जानि ॥२५॥
और, जैसे किसी वृक्ष पर आकर पक्षिगण रात्रिविश्राम करते हैं और प्रातःकाल होने पर उस वृक्ष से निर्मोह होकर आगे चल देते हैं । वही स्थिति इन कुटुम्बी जनों की भी समझो ! अतः इन के प्रति मोह क्यों और कैसा ! ॥२५॥ (३)
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सुन्दर समझि बिचार करि, तेरौ इनमैं कौंन । 
आपु आपु कौं जाहिगें, सुत दारा करि गौंन ॥२६॥
अतः साधक ! तूँ गम्भीरता से विचार तो कर कि यहाँ इनमें तेरा कौन है ! ये आज तेरे माता पिता भाई पुत्र या पत्नी कहलाने वाले, समय आने पर तुझे छोड़कर चल देंगे ॥२६॥
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सुन्दर तूं इन सौं बंध्यौ, ये सब तौसौं फर्क । 
याही बात बिचार करि, तूं हूं दै अब तर्क ॥२७॥
अरे साधक ! एक तूं है कि मोहवश इन से बंधा हुआ है और ये सभी समय आने पर तत्काल तुझ को छोड़कर चल देंगे । अतः तूँ भी मेरे इस कथन पर गम्भीरता से विचार कर ॥२७॥
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सुन्दर नाना जोनि मैं, जन्म जन्म की भूल । 
सुत दारा माता पिता, सगलै याही सूल ॥२८॥
ये अपने पूर्व योनियों के सभी जन्मों को भूलकर, आज यहाँ आ कर तेरे साथ माता पिता भाई पुत्र पत्नी के ममत्व के रूप में बँध गये हैं ॥२८॥
(क्रमशः) 

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