परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

समाधि रुप विशाल छत्री

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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कुछ समय के पश्‍चात् दादू पंथ के संतों ने तथा भक्तों ने भी मिलकर आचार्य कृष्णदेवजी से प्रार्थना की कि आप अब नारायणा दादूधाम पर पधारें । अब राजा आप के अनुकूल है किन्तु आचार्य कृष्णदेवजी ने नारायणा जाना स्वीकार नहीं किया । 
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उक्त प्रकार आप मेडता में ब्रह्म भजन करते हुये २१ वर्ष १ मास १७ दिन गद्दी पर विराज कर जनता को सदुपदेश किया फिर वि.सं. १८१० की माघ कृष्णा १३ को शरीर त्याग कर ब्रह्म लीन हो गये । मेडता में बेबचा सरोवर के पास ही आप की समाधि रुप विशाल छत्री बनी हुई है । वह छत्री जोधपुर नरेश ने बनवाई थी और जोधपुर नरेश ने ही आप का महोत्सव मेला किया था । 
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आप की समाधि पर आसपास की जनता की बहुत श्रद्धा है । आसपास की जनता तथा दूर - दूर से भी भक्त लोग छत्री पर श्रद्धा से आते हैं, प्रसाद चढाते हैं, दंडवत करते हैं, परिक्रमा करते हैं और कामनानुसार फल भी प्राप्त करते हैं । 
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आपके शिष्यों में चैनरामजी महाराज अच्छे भजनानन्दी तथा आपकी सेवा में तत्पर रहते थे । अत: कृष्णदेवजी महाराज ने अपने जीवनकाल में ही सब को कह दिया था कि - मेरे ब्रह्मलीन होने के पश्‍चात् चैनरामजी को ही गद्दी पर बैठाना, ये गद्दी के योग्य ही हैं अत: मेडता में चैनरामजी महाराज को ही गद्दी पर विराजमान कर दिया गया ।
(क्रमशः) 

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