परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

छत्री पर शिला लेख

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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६ आचार्य कृष्णदेव जी
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छत्री पर शिला लेख ~
छत्री की चरण चौकी में अंकित लेख इस प्रकार है - “श्रीराम जी सत्य श्री दयाल जी सहाय । अथ शुभ संवतसरे संवत १८२१ वर्षे शाके १६८६ प्रवर्तमाने, मासोत्तम माने फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपत्तिथी १ बुधवारे प्रतिष्ठा । शुभं भवतु ॥राम॥ 
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नीचे दो दोहे हैं - 
दोहा - 
संवत अठार दशोतरा, त्रयोदशी सुदि पोह । 
श्री कृष्णदास जन हरि मिले, पर हरि माया मोह ॥१॥
करि देवल चाढे कलश, सीलवन्त निज संत । 
पधराये गुरु पादिका, श्री चैनराम महन्त ॥२॥
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उक्त शिला लेख में पहले दोहे का चतुर्थ पाद - “त्रयो दशी सुदि पोह ।” विवाद खडा करता है । कारण - अन्य ग्रथों में और परंपरा की मान्याताओं में माघ कृष्ण १३ ही मिलता है । इससे इसका कारण यही ज्ञात होता है कि दोहा रचने वाले महानुभाव ने मोह के साथ अन्त्यानुप्रास मिलाने के लिये ही लिख दिया हो, अन्य तो कोई विशेष कारण ज्ञात नहीं हो रहा है और कोई कारण हो तो विज्ञ लोग विचार कर निर्णय करलें और उचित हो वही मानें । मैंने तो यह भेद दिखा दिया है ।  
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कृष्णदेवजी का व्यक्तित्व - 
मनहर 
सौम्य सम शीतल स्वभाव क्षमावान अति, 
परम दयालु मीठे वचन सदा कहे । 
राज कोप से भी शील तजा नहीं प्रकट है, 
धाम तजा क्षण ही में मोह में नहीं बहे ॥
महात्याग देख भूप चकित व्यथित भया, 
रोग हरा भूप का न सुख भूप के चहे । 
‘नारायण’ ब्रह्म का भजन मन से न तजा, 
कृष्णदेव कृष्णता से सदा दूर ही रहे ॥१॥
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दोहा - 
कृष्णदेव के तुल्य तो, कृष्णदेव ही होय । 
परम शांत संतत रहे, चहा न विग्रह कोय ॥२॥
कृष्णदेव सम जगत में, आचारज कम होय । 
उनका चरित्र देखकर, ज्ञात होत है सोय ॥३॥
भाव भजन वैभव सभी, उनमें पाये जाँय । 
तदपि रहे सम सर्व में, राव रंक पद आँय ॥४॥
मूर्ति ज्ञान संतोष की, कृष्णदेव थे आप । 
छू नहिं पाया लेश भी, काम लोभ मय ताप ॥५॥
कृष्णदेव की आज भी, पूजा होती देख । 
क्यों न होय वे हो गये, निर्गुण ब्रह्म अलेख ॥६॥ 
इति श्री चतुर्थ अध्याय समाप्त:
(क्रमशः)

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